रविवार, 16 अगस्त 2020

जादुई पत्थर और आलसी शिष्य की कहानी। Story of Magical Stone

जादुई पत्थर और आलसी शिष्य की कहानी। Story of Magical Stone

जादुई पत्थर और आलसी शिष्य की कहानी। Story of Magical Stone-: बहुत समय पहले कि बात है गुरुकुल में एक गुरूजी शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे। उस गुरुकुल के सभी शिष्य भी गुरु का सम्मान करता था। उन्हीं शिष्यों में से एक शिष्य नारायण था। नारायण अपने गुरूजी का बहुत आदर-सत्कार करता था। गुरूजी भी अपने इस शिष्य से बहुत खुश थे। परन्तु नारायण में एक अवगुण था जिससे उसके गुरूजी हमेशा चिंतित रहते थे।

Short Story of Magical Stone

उन्होंने कई बार उसे समझाने का प्रयास किया। परन्तु सारा प्रयास व्यर्थ हो गया। नारायण अपने अध्ययन के प्रति आलसी स्वभाव का था। वह हमेशा अध्ययन से दूर भागता था। उसके अन्दर आज के काम को कल पर टालने की आदत थी। वह हमेशा अपने छोटे से छोटे कामों को भी कल पर टाल देता था।

नारायण के इस आदत को देख गुरूजी ने मन ही मन सोचा, यदि मैंने अपने शिष्य के कल्याण के लिए यथाशीघ्र ही कोई निर्णय नहीं लिया तो नारायण का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा। यह सोच गुरूजी ने एक योजना बनाई। अगले दिन गुरूजी ने एक काले पत्थर के टुकड़े को लिया और नारायण को दे दिया।

नारायण को पत्थर देते समय कहा कि गुरूजी ने कहा वत्स! यह एक जादुई पत्थर है, जिसे किसी भी लोहे की वस्तु से स्पर्श करने पर वह सोने में परिवर्तित हो जाता है। चूँकि मैं 2 दिनों के लिए गुरुकुल से बाहर जा रहा हूँ। इसलिए यह जादूई पत्थर मैं तुम्हें सौप रहा हूँ। और जब मैं 2 दिनों के पश्चात आऊंगा। तब इस पत्थर को मैं तुमसे वापस ले लूंगा।

गुरु की आवाज सुनकर नारायण की आखें चमक उठी। उसने खुशी-खुशी गुरुजी के इस बात को मान लिया। लेकिन नारायण बहुत आलसी स्वभाव का था। इसलिए उसने पहला दिन सपने देखते हुए बिता दिया। अर्थात पहला दिन अपने मन में यही कल्पना करता रह गया कि उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होग। वह एक राजा की तरह अपना जीवन व्यतीत करेगा।

उसके पास ढेर सारे नौकर चाकर होंगे। और उसे अपने जीवन में कभी भी किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं होगी। यह सोचते हुए उसने बिना कुछ किये अपना दिन भर गवां दिया। दूसरे दिन नारायण प्रातः काल उठा। उसे अच्छी तरह से ज्ञात था कि आज इस जादुई पत्थर का लाभ लेने का आखिरी दिन है। इसलिए उसने अपने मन में निश्चय किया कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए इस जादुई पत्थर का लाभ जरुर उठाएगा।

उसने अपने मन में सोचा कि मंडी जाऊंगा और मंडी से ढेर सारा लोहे की वस्तु खरीद का लाऊंगा। इन सभी वस्तु को सोने में परिवर्तित कर दूंगा, जिससे मैं बहुत अधिक धनी आदमी बन जाऊंगा। फिर कुछ क्षण के बाद उसके मन में एक विचार आया कि अभी तो दिन बीतने में काफी समय है। इसलिए दोपहर में भोजन करने के बाद मंडी से सामान ले आऊंगा।

यह सोचकर उसने दोपहर का भोजन कर लिया। भोजन के उपरांत उसे नींद आ गई और वह सो गया। जब उठा तो सूर्यास्त हो चुका था और उसके गुरुजी भी उसके पास पहुंच चुके थे। गुरूजी को देख नारायण के तो होश उड़ गये। क्योंकि गुरूजी वह जादुई पत्थर वापस लेने आये थे। नारायण गुरूजी के चरणों में गिर गया और एक दिन और इस जादुई पत्थर को रखने की विनती करने लगा।

परन्तु गुरूजी ने उसकी एक न सुनी और जादुई पत्थर को वापस ले लिया। नारायण बहुत उदास हो गया। क्योंकि उसका धनी बनने सपना टूट गया। नारायण को अपनी गलती का एहसास हो गया कि उसके टालमटोल के कारण ही आज उसके हाथ से यह सुअवसर चला गया। उसने निश्चय किया कि आज के बाद वह कभी भी अपने कामों को करने में आलस नहीं करेगा।
इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि कभी भी अपने कामों को आने वाले कल पर नहीं टालना चाहिए। क्योंकि कल कभी नहीं आता। इसलिए आपने जो निर्णय लिया हो उसे समय रहते पूरा कर लें। अन्यथा आपको भी इस शिष्य की तरह पश्चाताप करना पड़ सकता है।

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