शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

मूर्ख कौवा और बंदर की कहानी I Moral Story of Crow and Monkey

मूर्ख कौवा और बंदर की कहानी I Moral Story of Crow and Monkey

सुंदरवन जंगल में एक बंदर और एक कौवा रहता था। उन दोनों के बीच कभी नहीं बनती थी। बंदर और कौवा के बीच हमेशा किसी ना किसी बात पर बहस छिड़ ही जाती थी। बारिश का मौसम आने वाला था। इसी को ध्यान में रखते हुए कौवा हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने लिए एक घोंसला बनाना शुरु किया। बारिश के समय में बहुत तेज आंधी तूफान भी आती थी।

Crow Monkey Motivational Stories

इसीलिए कौवा ने एक बहुत ही मजबूत और सुंदर सा अपना एक घोंसला बनाया। ताकि बारिश के समय वह खुद को सुरक्षित रख सके। कुछ दिनों बाद बारिश का मौसम आ गया। एक दिन अचानक जोर-जोर से बिजली कड़कने लगी और देखते ही देखते मुसलाधार बारिश होने लगी। अचानक इस बारिश को देख। सभी जानवर अपने-अपने घरों की तरफ भागने लगे।

कौवा भी तेजी से अपने घोंसले में वापस आ गई और आराम करने लगी। अभी कुछ समय बीता ही था कि वह बंदर भी खुद को छुपाने के लिए एक पेड़ के नीचे आ पहुंचा। उसे देख कौवा ने कहा कि हमेशा इधर उधर घूमने में अपना समय बर्बाद करते हो भला ऐसे मौसम से बचने के लिए अपने लिए एक घर क्यों नहीं बना लेते? बंदर चुप रहा और खुद को बचाने के लिए पेड़ की आड़ में छिपने की कोशिश करने लगा।


कुछ देर बाद कौवा ने फिर से कहा कि पूरी गर्मी इधर-उधर आलस में बिता देते हो। यदि आज अपने लिए एक सुंदर सा घर बनाया होता तो इस तरह बारिश में भींगने की नौबत नहीं आती। यह सुन बंदर ने गुस्से में कहा तुम अपने काम से काम रखो। तुम अपनी चिंता करों। मैं अपने लिए घर बनाऊँ या नहीं बनाऊँ तुम्हें इससे क्या? यह बोल बन्दर फिर से खुद को बारिश से बचाने में जुट गया।

चूँकि बहुत तेज मूसलाधार बारिश हो रही थी और बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। अब बन्दर ठण्ड से और भी काँप रहा था। उसे ठण्ड में कांपता देख कौवे ने फिर उस बंदर से कहा की काश! यदि तुमने भी मेरी तरह बुद्धिमानी दिखाई होती तो आज इस बारिश में इस तरह भींगते नहीं। यह सुनकर बंदर से अब रहा नहीं गया।

वह गुस्से में पेड़ पर चढ़ने लगा। वह बोल रहा था कि यह सच है कि मुझे घर बनाना नहीं आता। लेकिन घर तोड़ना आता है। यह कहते हुए वह झट से पेड़ पर चढ़ा और कौवा के घोसले को पूरी तरह तहस-नहस कर दिया। अब कौवा भी बंदर की तरह बेघर हो चुकी थी और ठंड से कांप रही थी। उसे अपनी गलती का एहसास हो चुका था। लेकिन अब कर भी क्या सकती थी?
इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि यदि हम किसी व्यक्ति को मुसीबत में देखेते हैं तो उसकी मदद करनी चाहिए। यदि हम उसकी मदद करने में असमर्थ हैं तो हमें व्यर्थ की नसीहत नहीं देनी चाहिए।

यदि हम भी बार-बार व्यर्थ का उपदेश देंगे तो हमारा हाल भी उस कौवा की तरह ही होगा। इसलिए बेकार में लोगों को उपदेश नहीं देना चाहिए।


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