शनिवार, 13 जून 2020

तेनालीराम कहानियाँ : अपमान का बदला । Moral Hindi Stories

तेनालीराम कहानियाँ : अपमान का बदला । Moral Hindi Stories


तेनालीराम कहानियाँ : अपमान का बदला । Moral Hindi Stories-: एक बार की बात है तेनालीराम राजा कृष्णदेव राय के दरबार में जाना चाहते थे. लेकिन राजा के दरबार में बिना किसी जान-पहचान के जाना टेढ़ी खीर थी. राजा कृष्णदेव राय बुद्धिमानों व गुणवानों का बड़ा आदर करते थे. यह बात तेनालीराम को पता था. इसलिए तेनालीराम हमेशा एक ऐसे अवसर की ताक में रहने लगा कि उसकी भेंट राज दरबार के किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति से हो सके.

इसी बीच तेनालीराम का विवाह मगम्मा नामक एक लड़की से हो गया और विवाह के एक वर्ष बाद उनके घर एक पुत्र हुआ. इसी बीच तेनालीराम को पता चला कि राजा कृष्णदेव राय के राजगुरु मंगलगिरि नामक स्थान पर आये हुए हैं तब तेनालीराम (रामलिंग ) वहां जाकर उनकी बड़ी सेवा की और अपनी समस्या बताई.

राजगुरु बहुत चालाक व्यक्ति थे. उसने रामलिंग से खूब सेवा करवाई और लंबे-चौड़े वायदे करता रहा। रामलिंग अर्थात तेनालीराम ने उसकी बातों पर विश्वास कर लिया और राजगुरु को प्रसन्न रखने के लिए वह दिन-रात एक कर दिया। राजगुरु ऊपर से तो चिकनी-चुपड़ी बातें करता रहा लेकिन मन-ही-मन वह तेनालीराम की तीक्ष्ण बुद्धि से इर्ष्या करने लगा.

तेनालीराम कहानियाँ : अपमान का बदला । Moral Hindi Stories
तेनालीराम कहानियाँ : अपमान का बदला । Moral Hindi Stories

उसने सोचा कि इतना बुद्धिमान और विद्वान व्यक्ति राजा के दरबार में आ गया तो उसकी अपनी कीमत गिर जाएगी लेकिन उसने जाते समय तेनालीराम से कहा कि- जब भी मुझे उचित अवसर लगेगा मैं तुम्हारा परिचय महराज कृष्णदेव राय से अवश्य कराउंगा'. तेनालीराम राजगुरु के बुलावे की उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगा परन्तु कई दिन बीत गये लेकिन कोई बुलावा नहीं आया.
लोग उससे हँसकर पूछते, ‘क्यों भाई तेनालीराम, जाने के लिए सामान बाँध लिया ना?’ कोई कहता, ‘मैंने सुना है कि तुम्हें विजयनगर जाने के लिए राजा ने विशेष दूत भेजा है।’ तेनालीराम उत्तर देता-‘समय आने पर सब कुछ होगा।’ लेकिन मन-ही-मन उसका विश्वास राजगुरु से उठ गया। अंत में निराश होकर तेनालीराम ने फैसला किया कि वह स्वयं ही विजयनगर जाएगा। उसने अपना घर और घर का सारा सामान बेचकर यात्रा का खर्च जुटाया और माँ, पत्नी तथा बच्चे को लेकर विजयनगर के लिए चल दिया. यात्रा में जहाँ कोई रुकावट आती, तेनालीराम राजगुरु का नाम ले देता, कहा, ‘मैं उनका शिष्य हूँ।’ उसने माँ से कहा, ‘देखा? जहाँ राजगुरु का नाम लिया, मुश्किल हल हो गई. कोडवीड़ नामक स्थान पर तेनालीराम की भेंट वहाँ के राज्य प्रमुख से हुई, जो विजयनगर के प्रधानमंत्री का एक संबंधी व्यक्ति था। उसने बताया कि महाराज बहुत गुणवान, विद्वान और उदार हैं, लेकिन उन्हें कभी-कभी जब क्रोध आता है तो देखते ही देखते सिर धड़ से अलग कर दिए जाते हैं। ‘जब तक मनुष्य खतरा मोल न ले, वह सफल नहीं हो सकता। मैं अपना सिर बचा सकता हूँ। तेनालीराम के स्वर में आत्मविश्वास था। राज्य प्रमुख ने उसे यह भी बताया कि प्रधानमंत्री भी गुणी व्यक्ति का आदर करते हैं, पर ऐसे लोगों के लिए उनके यहाँ स्थान नहीं है, जो अपनी सहायता आप नहीं कर सकते। चार महीने की लंबी यात्रा के बाद तेनालीराम अपने परिवार के साथ विजयनगर पहुँचा। वहाँ की चमक-दमक देखकर तो वह दंग ही रह गया। उसने कुछ दिन ठहरने के लिए वहाँ एक परिवार से प्रार्थना की। वहाँ अपनी माँ, पत्नी और बच्चे को छोड़कर वह राजगुरु के यहाँ पहुँचा. राजमहल के बड़े-से-बड़े कर्मचारी से लेकर रसोइया तक वहाँ जमा थे। नौकर-चाकर भी कुछ कम न थे। तेनालीराम ने एक नौकर को संदेश देकर भेजा कि उनसे कहो तेनाली गाँव से राम आया है। नौकर ने वापस आकर कहा, ‘राजगुरु ने कहा है कि वह इस नाम के किसी व्यक्ति को नहीं जानते।’ तेनालीराम बहुत हैरान हुआ. राजगुरु ने अपने नौकरों से चिल्लाकर कहा, ‘मैं नहीं जानता, यह कौन आदमी है, इसे धक्के देकर बाहर निकाल दो।’ नौकरों ने तेनालीराम को धक्के देकर बाहर निकाल दिया। चारों ओर खड़े लोग यह दृश्य देखकर ठहाके लगा रहे थे। उसका कभी ऐसा अपमान नहीं हुआ था। उसने मन-ही-मन फैसला किया कि राजगुरु से वह अपने अपमान का बदला अवश्य लेगा। लेकिन इससे पहले राजा का दिल जीतना जरूरी था। दूसरे दिन वह राजदरबार में जा पहुँचा। उसने देखा कि वहाँ जोरों का वाद-विवाद हो रहा है। संसार क्या है? जीवन क्या है? ऐसी बड़ी-बड़ी बातों पर बहस हो रही थी। एक पंडित ने अपने विचार प्रकट करते हुए कहा, ‘यह संसार एक धोखा है। हम जो देखते-सुनते हैं, महसूस करते हैं, चखते या सूँघते हैं, केवल हमारे विचार में है। असल में यह सब कुछ नहीं होता, लेकिन हम सोचते हैं कि होता है।’ ‘क्या सचमुच ऐसा है?’तेनालीराम ने कहा। ‘यही बात हमारे शास्त्रों में भी कही गई है।’ पंडितजी ने थोड़ी ऐंठ दिखाते हुए हैरान होकर पूछा। और सब लोग चुप बैठे। शास्त्रों ने जो कहा, वह झूठ कैसे हो सकता है। लेकिन तेनालीराम शास्त्रों से अधिक अपनी बुद्धि पर विश्वास करता था। उसने वहाँ बैठे सभी लोगों से कहा, ‘यदि ऐसी बात है तो हम क्यों न पंडितजी के इस विचार की सच्चाई जाँच लें। हमारे उदार महाराज की ओर से आज दावत दी जा रही है, उसे हम जी भरकर खाएँगे। पंडितजी से प्रार्थना है कि वह बैठे रहें और सोचें कि वह भी खा रहे हैं।’ तेनालीराम की बात पर जोर का ठहाका लगा. पंडितजी की सूरत देखते ही बनती थी कि स्वयं महाराज भी तेनालीराम के इस बात पर बहुत प्रसन्न हुए कि उसे स्वर्णमुद्राओं की एक थाली भेंट की और साथ ही साथ तेनालीराम की बुद्धि को देखते हुए उसे राज विदूषक भी बना दिया. सभी लोग तेनालीराम की तालियाँ बजाकर स्वागत कर रहे थे. वहां राजगुरु स्वयं भी उपस्थित थे जो मन ही मन तेनालीराम से बहुत इर्ष्या कर रहे थे. इस प्रकार तेनालीराम ने अपने बुद्धि और चतुराई से महराज के राजदरबार में स्थान भी पा लिया और साथ ही साथ राजगुरु से अपना बदला भी ले लिया.

इस कहानी से सीख -: इस कहानी "तेनालीराम कहानियाँ : अपमान का बदला । Moral Hindi Stories" से हमें यही सीख मिलती है कि परिस्थिति कितनी भी विकट क्यों न हो हमें धैर्य के साथ इसका सामना करना चाहिए.

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