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सोमवार, 28 अक्टूबर 2024

लालची राजकुमार की कहानी I Greedy Price Moral Story in Hindi

एक समय की बात है, एक राजा ने एक राजकुमार को अंतरंग शिक्षा देने के लिए नियुक्त किया। इस राजकुमार का नाम था विक्रम। विक्रम एक बहुत ही बुद्धिमान और हार्दिक व्यक्ति था, लेकिन उसमें एक गंभीर कमी थी - वह बहुत लालची था। विक्रम ने हमेशा ही धन की चाह रखी और उसकी उम्मीदें उसके पिताजी के पास हमेशा बढ़ती रहती थी। लेकिन उसने कभी अपनी चाह के लिए किसी अन्य का हक छीनने का सोचा ही नहीं। उसकी लालच इतनी गहरी थी कि वह किसी भी हद तक जा सकती थी।


एक दिन, राजकुमार ने एक गरीब व्यक्ति का घर देखा और उसके पास कुछ सोने के सिक्के देख कर वह उसके पास जाकर उन्हें छीनने की कोशिश की। गरीब व्यक्ति को इस बात का अंदाजा था कि राजकुमार उसे पहचान नहीं सकेगा, इसलिए उसने उसे बाहर भगा दिया।


गरीब व्यक्ति ने इस बात की शिकायत राजा को की और राजा ने विक्रम को सजा सुनाई। राजा ने कहा, "तुम्हें 7 दिनों के लिए अपने राज्य को छोड़ना होगा और सिर्फ एक गाँव में एक गरीब किसान के साथ रहना होगा।"


विक्रम ने राजा की आज्ञा पालन की और उसने गाँव में जाकर उस गरीब किसान के साथ रहना शुरू किया। वहाँ उसने देखा कि गरीब किसान और उसका परिवार कितने खुशहाल थे और उनके पास थोड़ा भी धन नहीं था।


विक्रम ने गरीब किसान के साथ रहकर बहुत कुछ सीखा। उसने समझा कि जीवन में धन की महत्वता है, लेकिन उससे ज्यादा भावनात्मक संबंधों की महत्वता है। वह अब लालची नहीं था और उसने गरीब किसान की मदद करना शुरू किया।


एक दिन, राजा ने विक्रम को फिर से बुलाया और पूछा, "क्या तुमने अपनी गलतियों से सीखा है?" विक्रम ने विनम्रता से कहा, "हाँ, महाराज। मैंने अपनी लालची और अहंकारी आदतों से सीखा है और अब मैं इस परिवर्तन के साथ वापस आया हूँ।"


राजा ने विक्रम की प्रशंसा की और राज्य के उसी दिन उसे वापस बुलाया। विक्रम ने अपने अनुभाव को सच्चाई के रूप में स्वीकार किया और वह एक नया और समर्पित राजकुमार बन गया।


इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि लालच से दूर रहना बेहद महत्वपूर्ण है। धन महत्वपूर्ण है, लेकिन सच्चे मूल्यों की समझने और उन्हें महत्व देने की क्षमता भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। इसी तरह सच्चे में धन के पीछे न भागने के साथ ही सही साझेदारी और मूल्यों की सम्मान के साथ रहना हमें सफलता की राह में मदद कर सकता है।


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बुधवार, 26 जनवरी 2022

किसान और जादुई घड़ा की कहानी | Farmer Moral Story in Hindi

एक बार की बात है I हरिपुर नामक गांव में एक बहुत ही निर्धन किसान रहता था I वह काफी निर्धन था I उसके जीवन में बहुत सारी कठिनाइयां थी I उसे मुश्किल से ही दो वक्त की रोटी भी मिल पाती थी I अपने इस स्थिति से वह हमेशा परेशान रहता था I  वह अपनी छोटी मोटी जरूरतें भी पूरी नहीं कर पाता था I अपने जीवन से निराश होकर उसने निश्चय किया कि वह खुदखुशी कर लेगा I यह सोच कर वह पास की नदी में कूद गया I उसी समय एक महात्मा वहां से गुजर रहे थे I उन्होंने उस किसान को नदी में कूदते हुए देखा I उन्होंने उसे बचाने के लिए खुद भी नदी में कूद गए और कुछ देर बाद उन्होंने उस किसान को बचा लिया I

Farmer Moral Story in Hindi

जब किसान को होश आया तो महात्मा जी ने उससे पूछा कि तुम मरने क्यों जा रहे थे ? तब रोते हुए किसान ने अपनी सारी बातें बताई I कुछ देर बाद महात्मा जी ने उस किसान से कहा कि उसके पास एक जादुई घड़ा है I यदि तुम मेरे आश्रम में दो वर्ष तक मेरी सेवा करोगे तो मैं वो जादुई घड़ा तुम्हें दे दूँगा और यदि तुम्हें मेरे आश्रम में पाँच वर्षों तक मेरी सेवा की तो मैं तुम्हें घड़ा बनाने की विधि बता दूँगा I


किसान ने सोचा कि पाँच वर्षों तक कौन सेवा करेगा I उसने महात्माजी से कहा कि वह दो वर्षों तक सेवा करेगा I और वह बड़ी मेहनत और लगन से उस महात्माजी की सेवा करने लगा I दो वर्षों के बाद महात्मा ने किसान को वह जादुई घड़ा दे दिया और कहा कि तुम इस जादुई घड़ा की मदद से जो चाहे वो मांग सकते हो और यह तुम्हारी सारी मनोकामनाएं पूरी कर देगा I

लेकिन याद रखना जब कभी यह जादुई घड़ा फूट जायेगा तब तुम फिर से निर्धन की तरह रह जाओगे I जादुई घड़ा की मदद से तुम जो कुछ भी धन, महल, खेत आदि पाओगे वह सब खत्म हो जायेगा और तुम पहले कि तरह ही निर्धन हो जाओगे I किसान उस जादुई घड़ा को लेकर अपने घर चला गया I इस घड़ा की मदद से किसान बहुत अमीर हो गया I उसके पास बहुत सारा धन और रहने के लिए एक बहुत बड़ा महल था I वह घड़ा को बहुत संभाल कर रखता था I उसे अब किसी भी चीज की कमी नहीं थी I धीरे-धीरे उसके अंदर घमंड आ गया I उसके अंदर कुछ बुरी आदतें भी आ गई I

एक दिन वह बहुत गुस्से था और गुस्से में ही उसने गलती से उस जादुई घड़े में लात मार दिया जिससे घड़ा तुरंत फूट गया I घड़ा के फूटते ही वह किसान फिर से पहले जैसा गरीब हो गया I उसे अपनी गलती पर बहुत पछतावा हो रहा था कि काश ! वह उस महात्माजी से इस जादुई घड़े को बनाने की विधि सीख लेता I

इस कहानी किसान और जादुई घड़ा की कहानी | Farmer Moral Story in Hindi से सीख हमें यही सीख मिलती है कि यदि लम्बे समय तक सफल होना है तो बहुत धैर्य व कठिन परिश्रम करना होगा क्योंकि बड़ी सफलता पाने का कोई शोर्टकट नहीं होता है I जल्दी मिलने वाली सफलता अधिक दिनों तक नहीं टिकती है I इसलिए हमें हमेशा धैर्य बनाये रखना चाहिए I


रविवार, 16 अगस्त 2020

प्रेरणादायक कहानी : गर्म कोयले का टुकड़ा। Hot Coal Story

प्रेरणादायक कहानी : गर्म कोयले का टुकड़ा। Hot Coal Story

प्रेरणादायक कहानी : गर्म कोयले का टुकड़ा। Hot Coal Story-: एक गांव में चरणदास नामक एक किसान रहता था। उसका एक पुत्र था जिसका नाम रमेश था। रमेश बचपन से ही पढ़ने में बहुत तेज था। चूँकि उसके पिता एक निर्धन परिवार से थे। इसलिए रमेश हमेशा पूरी इमानदारी से पढ़ाई करता था और अपने गांव के विद्यालय में हमेशा पढ़ाई में सबसे आगे रहता था। परंतु जब से वह शहर की कॉलेज में दाखिला लिया। तब से वह अलग अलग सा रहने लगा। रमेश अब अपने घरवालों की बात नहीं सुनता था।

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उनसे झूठ बोलता था और हमेशा अनावश्यक खर्चों के लिए पैसों की मांग करता था। अचानक रमेश के व्यवहार में आए इस बदलाव को देख उसके घरवाले चिंतित थे। जब उसके पिता ने कॉलेज में पता किया। तब उन्हें पता चला कि रमेश बुरी संगति में पड़ गया है। उसके कुछ बुरे मित्रों से मित्रता हो गई है जो सिनेमा देखने, ध्रूमपान करने और फिजूलखर्ची करने के आदि थे।

इसी कारण रमेश में भी यह आदत लग गई है। रमेश अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान नहीं देता था। घरवालों के समझाने के बाद भी उसका यही जवाब होता था कि मैं भले ही बुरे लड़कों के साथ रहता हूँ। परंतु उसकी आदत का मुझ पर कोई असर नहीं होता है। क्योंकि मेरे पास अच्छे और बुरे की समझ है। इस तरह दिन बीतता गया और रमेश की परीक्षा का समय आ गया।

रमेश ने परीक्षा तो दी। परंतु उसकी मेहनत पर्याप्त नहीं होने के कारण वह उस परीक्षा में फेल हो गया। हमेशा अच्छे नंबरों से पास होने वाले रमेश के लिए यह एक बहुत दुखद घटना थी। वह अंदर से बिल्कुल टूट चुका था। रमेश अब अपने घर से कहीं बाहर नहीं निकलता और ना ही किसी से ठीक से बात ही करता। वह दिन भर अपने कमरे में ही पड़ा रहता और कुछ न कुछ सोचते रहता।

उसकी इस स्थिति को देख उसके घर वाले काफी चिंतित हो गए। सभी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की। परंतु रमेश पर इसका कोई असर नहीं हुआ। मानो रमेश को सांप सूंघ गया हो। जब यह बात रमेश के गांव के स्कूल के एक प्रिंसिपल को पता चली तो उन्होंने रमेश को एक दिन अपने घर पर बुलाया। ठंड का समय था।

इसलिए उस समय प्रिंसिपल साहब अंगीठी में कोयला डालकर ताप रहे थे। रमेश गया और चुपचाप उनके बगल में बैठ गया। रमेश को ऐसा देख उसके प्रिंसिपल को बहुत बुरा लगा। क्योंकि रमेश उनका प्रिय शिष्यों में से एक था। उन्होंने निश्चय किया कि रमेश को इस स्थिति से जरूर निकालेंगे। कुछ देर बाद प्रिंसिपल साहब अचानक उठे और चिमटी से कोयले एक जलते हुए टुकड़े को निकालकर मिट्टी में डालने लगे। कोयला कुछ देर तक तो गर्मी देता रहा।

परंतु अंततः बुझ गया। यह देख रमेश ने उत्सुक होते हुए पूछा कि प्रिंसपल साहब आपने उस गर्म कोयले के टुकड़े को मिटटी में क्यों डाल दिया? इससे तो वह बेकार हो गया। यदि आप उसे अंगीठी में ही रहने देते तो वह अन्य कोयलों की तरह ही गर्मी देने के काम आता। रमेश की बात सुनकर प्रिंसिपल साहब मुस्कुराए। उन्होंने कहा कि कुछ देर तक अंगीठी से बाहर रहने के कारण यह कोयले का टुकड़ा बेकार नहीं हुआ है।

देखो मैं इस टुकड़े को पुनः इस अंगीठी में डाल देता हूँ। यह कहते हुए उन्होंने उस टुकड़े को मिट्टी से उठाकर अंगीठी में पुनः डाल दिया। उसके बाद प्रिंसपल साहब ने कहा कुछ समझ में आया रमेश! रमेश ने "ना" में सर हिलाया। प्रिंसिपल साहब ने विस्तार में बताया कि तुम भी उस कोयले टुकड़े के समान हो। पहले तुम अच्छी संगति में थे।

पढ़ाई पर ध्यान देते थे और काफी मेहनत करते थे। इसलिए हमेशा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होते थे। परंतु जिस तरह यह कोयले का टुकड़ा भी मिट्टी में जाने के कुछ देर बाद बुझ गया। तुम भी उसी प्रकार अपने गलत संगत के कारण परीक्षा में असफल हो गए हो। परंतु यह कतई जरुरी नहीं है कि एक बार फेल होने से तुम्हारे अंदर के सभी अच्छे गुण भी समाप्त हो गए हैं।

जैसे कोयले का टुकड़ा मिटटी में रहने के बाद भी बेकार नहीं हुआ और अंगीठी में डालने पर तुरंत धधक कर जलने लगा। ठीक उसी प्रकार तुम भी यदि आज के बाद अच्छी संगत में रहोगे और अच्छा आचरण करोगे। तब तुम पुनः परीक्षा में सफल हो जाओगे।
रमेश प्रिंसिपल साहब की बातों का मतलब समझ चुका था। वह चुपचाप उठा और उसने प्रिंसिपल साहब के चरण को स्पर्श किया और मुस्कुराते हुए अपने भविष्य को बनाने के लिए निकल पड़ा।
इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हो सकता है कि कभी कभी हम भी गलत संगत में पड़ कर अपने जीवन में और असफल हो जाए। परंतु समय रहते हमें अच्छी संगत में पुनः वापस आ जाना चाहिए। ताकि आने वाले भविष्य में हमारा जीवन सुखमय हो।

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शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

प्रेरणादायक कहानी : हथौड़ा और ताला-चाबी। Lock And Key Story

प्रेरणादायक कहानी : हथौड़ा और ताला-चाबी। Lock And Key Story

प्रेरणादायक कहानी : हथौड़ा और ताला-चाबी। Lock And Key Story-: एक बार की बात है। शहर में एक दुकानदार रहता था। उसका नाम धनिक लाल था। उसकी एक छोटी सी ताले चाबी की पुरानी दुकान थी। वह काफी सस्ते दामों पर लोगों को ताले चाबी बेचा करता था। शहर के लोग भी वहां से अपने घरों के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के ताले-चाबी खरीदा करते थे। साथ ही साथ कभी कभार ताले की चाबी खो जाने पर ताले की डुप्लीकेट चाबी भी बनवाते थे।

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ताले वाले की दुकान में एक भारी भरकम हथौड़ा था, जो कभी कभार ताले को तोड़ने के काम आता था। हथौड़ा के मन में हमेशा एक प्रश्न आता था कि आखिर इन छोटी-छोटी चाबी में ऐसी कौन सी विशेषता है, जो इतने मजबूत से मजबूत ताले को भी चुटकियों में खोल देती है। जबकि मुझे उन तालों को खोलने के लिए न जाने कितने ही बार प्रहार करना पड़ता है।

इसी प्रकार कुछ दिन बीत गया। एक दिन उस हथौड़े से रहा नहीं गया और जब धनिक लाल अपनी दुकान को बंद करके वापस अपने घर चला गया। तब हथौड़ा ने एक छोटी सी चाबी से पूछा कि बहन यह बताओ कि आखिर तुम्हारे अंदर ऐसी कौन सी शक्ति या गुण है, जो तुम इतने बड़े और मजबूत से मजबूत तालों को भी बड़ी आसानी से खोल देती हो।

जबकि मैं तुमसे बहुत अधिक बलशाली हूं। फिर भी मुझे उसी ताले को खोलने में बहुत प्रयत्न करना पड़ता है। हथौड़ा की बात सुनकर चाबी ने मुस्कुराते हुए कहा, दरअसल बात यह है कि तुम तालों को खोलने के लिए बल का प्रयोग करते हो और उन पर लगातार प्रहार करते हो।

इसलिए ऐसा करने से ताला खुलता नहीं बल्कि टूट जाता है। जबकि मैं ताले को बिल्कुल भी चोट नहीं पहुंचाती हूं। बल्कि मैं तो उसके मन में उतर कर उसके हृदय तक पहुंचती हूं और उसके दिल में अपनी जगह बनाती हूँ। इसके बाद मैं उनसे खुलने का अनुरोध करती हूँ, जिससे वह तुरंत खुल जाता है। अर्थात उन्हें प्रेम से खुले का अनुरोध करते हूँ। जबकि तुम ऐसा नहीं करते हो।

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमारे जीवन में भी ऐसा होता है कि हम सचमुच में किसी के दिल को जीतना चाहते हैं। परंतु उससे जबरदस्ती करने लगते हैं, जिसके कारण वह हमसे बहुत दूर चला जाता है और हमें वह पसंद नहीं करता है।

यदि हम उस व्यक्ति से बल के जगह प्रेम पूर्वक दिल जीते तो वह व्यक्ति सदा के लिए हमारा मित्र बन जाता है और उसकी उपयोगिता कई गुना बढ़ जाती है। अर्थात हर एक चीज जिसे बल पूर्वक प्राप्त किया जा सकता है उसे प्रेमपूर्वक पाया जा सकता है। लेकिन हर एक चीज जिसे प्रेम से पाया जा सकता है उसे बल पूर्व प्राप्त नहीं किया जा सकता है। यही प्राकृतिक नियम है।

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रविवार, 9 अगस्त 2020

प्रेरणादायक कहानी : साधु की झोपड़ी। Positive Thinking Story

प्रेरणादायक कहानी : साधु की झोपड़ी। Positive Thinking Story

प्रेरणादायक कहानी : साधु की झोपड़ी। Positive Thinking Story-: हनुमान नगर में दो साधु रहते थे। वे दोनों दिनभर भिक्षा मांग कर अपना जीवन यापन करते थे। उन दोनों की भगवान में बड़ी आस्था थी। वे गांव के ही एक मंदिर में पूजा अर्चना भी करते थे। दोनों साधु भगवान की भक्ति बड़ी आस्था के साथ करते थे। उनके पास एक छोटी सी झोपड़ी थी, जिसमें वह दोनों आराम से रहते थे, दोनों का जीवन बड़ी सुख में बीत रहा था।
Sadhu Ki Jhopdi
एक दिन अचानक उस गांव में जोरों की वर्षा और बहुत तेज आंधी आयी। यह आंधी-तूफान बहुत तेज था, जिसके कारण दोनों साधु की झोपड़ी का आधा हिस्सा टूट गया। जब आंधी शांत हुई तब पहला साधु अपनी झोपड़ी के पास पहुंचा तो उसने देखा की झोपड़ी का आधा भाग टूट चुका है। यह देखकर पहला साधु बहुत क्रोधित हुआ।

उसने आवेश में भगवान को भला-बुरा कहन शुरू कर दिया। वह जोर-जोर से बोलने लगा कि भगवान तूने मेरे साथ हमेशा गलत किया है। मैं दिन भर तेरा नाम लेता हूं। मंदिरों में तेरी पूजा अर्चना करता हूं। फिर भी तूने मेरी झोपड़ी तोड़ दी है। जबकि गांव के बेईमान, चोर-लुटेरों का घर तो सुरक्षित है। मैंने तुंहारा क्या बिगाड़ा था कि तुमने मेरे साथ ऐसा किया?

तभी दूसरा साधु आता है। उसने भी देखा कि उसकी झोपड़ी का आधा भाग तेज आंधी-तूफान में टूट चुका है। यह देख वह बहुत खुश हुआ। और वह खुशी से नाचने लगा। वह बोलने लगा कि भगवान आज मुझे विश्वास हो गया कि तुम अपने भक्तों का बहुत ध्यान रखते हो। आज मेरा विश्वास तुम पर और भी अधिक गहरा हो गया।

क्योंकि आधी झोपड़ी तूने ही बचाए होगी। अन्यथा इतनी तेज आंधी में पूरी झोपड़ी ही उड़ जाती। आपकी कृपा से हमारे पास रखने के लिए कुछ जगह बचा है। इसलिए मैं अब अधिक आस्था के साथ तुम्हारी पूजा-अर्चना करूंगा। तुम्हारे ऊपर बहुत विश्वास गया है।

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि एक ही घटना को एक ही जैसे दो लोगों ने कितने अलग अलग ढंग से देखा। हमारी सोच ही हमारे आने वाले भविष्य को निर्धारित करती है। हमारी दुनिया तभी बदल सकती है, जब हम अपनी सोच को बदलेंगे।

यदि हमारी सोच भी पहले साधु की तरह होगा तो हमें हर चीज में नकारात्मकता ही दिखेगी। जबकि दूसरे साधु की तरह हमें हर समस्या में एक अवसर नजर आने लगेगा। इसलिए विकट परिस्थिति में भी अपनी सोच को सकारात्मक बनाए रखिए क्योंकि समय बदलने में कभी समय नहीं लगता।

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शिक्षाप्रद कहानी : बुढ़िया की सुई। Prernadayak Moral Story

शिक्षाप्रद कहानी : बुढ़िया की सुई। Prernadayak Moral Story

शिक्षाप्रद कहानी : बुढ़िया की सुई। Prernadayak Moral Story-: किसी गांव में एक बुढ़िया रहती थी। वह गांव के ही एक सड़क के किनारे रहती थी। वह अपने झोपड़ी में ही रह करती थी। और उस झोपड़ी के बगल में ही एक रोड लाइट जलती थी। एक रात वह बुढ़िया रात के अंधेरे में अपने झोपड़ी से बाहर निकली और कुछ ढूंढने लगी। अभी वह ढूँढ ही रही थी कि तभी उस रास्ते से उसी गांव का एक व्यक्ति गुजर रहा था।
उसने देखा कि यह बुढ़िया रात के अंधेरे में कुछ ढूंढ रही है। उसने पूछा कि माताजी आप क्या ढूंढ रहे हैं? कुछ नहीं बेटा मेरी सुई खो गई है। बस उस ही ढूंढ रही हूं, बुढ़िया ने उत्तर दिया। फिर क्या था वह व्यक्ति भी उस महिला की मदद करने के लिए रुक गया और सुई ढूंढने लगा। कुछ देर बाद उस रास्ते से कुछ और लोग गुजर रहे थे।

उन्होंने देखा कि सभी लोग कुछ ढूंढ रहे हैं। तो वे सब भी वहीँ रुक गए और पूछने लगे। पूछने पर पता चला कि सभी लोग सुई ढूंढ रहे हैं। वे सभी भी मदद करने लगे। चूँकि रोड लाइट जल रहा था। इसलिए सभी लोग बड़े ध्यान से उस महिला के सुई को ढूंढ रहे थे। तभी उन्ही में से एक व्यक्ति ने उस बूढी महिला से पूछा कि माता जी आपकी सुई कहां गिरी थी।

बुढ़िया ने जवाब दिया कि बेटा मेरी सुई तो झोपड़ी के अंदर गिरी थी। यह सुनते ही सभी लोग उसे महिला पर क्रोधित हो उठे। और फिर उन्हीं में से किसी ने ऊंची आवाज में कहां कमाल करती हो आप भी इतनी देर से सुई जोकि झोपड़ी के अन्दर गिरी थी उसे बाहर क्यों ढूंढ रहे हैं। आखिर तुम सुई वहां खोजने के बजाए बाहर क्यों ढूंढ रही हो? बुढ़िया ने उत्तर दिया बेटा क्योंकि रोड पर लाइट जल रही है।

जबकि झोपड़ी में अंधेरा है। बुढ़िया की बात सुनकर सभी लोग क्रोधित होते हुए। अपने घर की ओर लौट गए। इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि आज के युवा लोग भी अपने भविष्य को लेकर सोचते हैं की लाइट कहां जल रही है। किस फिल्ड में अधिक पैसा है और बिना मेहनत के ही सफल होना चाहते हैं। लोग या नहीं सोचते कि हमारा दिल क्या कह रहा है? हमें किस क्षेत्र में जाना चाहिए।

हमें चाहिए कि हम जिस सील्ड में भी अच्छा कर सके। उसी फील्ड में अपना करियर बनाना चाहिए। यदि भेड़ की चाल चलते हुए किसी ऐसे फील्ड में घुस जाए जिसमें बाकी के लोग भी जा रहे हो, यह सोच कर कि यहां पैसा बहुत है तो आगे चलकर हमें निराशा ही हाथ लगती है, इसीलिए समय रहते अपने पसंदीदा कार्य को चुनें। अन्यथा अपने उज्जल भविष्य से हमें हाथ धोना पड़ सकता है।

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प्रेरणादायक कहानी : सन्यासी की जड़ी-बूटी। Hindi Kahaniya

प्रेरणादायक कहानी : सन्यासी की जड़ी-बूटी। Hindi Kahaniya

प्रेरणादायक कहानी : सन्यासी की जड़ी-बूटी। Hindi Kahaniya-: बहुत समय पहले की बात है। एक बहुत ही विद्वान सन्यासी थे। वह हमेशा अपने साधना में लीन रहते थे। वह काफी दिनों से हिमालय पर निवास करते थे। उनके पास बहुत सारी जड़ी-बूटियों का ज्ञान था। आसपास के सभी गांव ही नहीं बल्कि दूर-दूर तक उनकी ख्यति फैली हुई थी। एक दिन एक महिला उनके पास पहुंची और अपना दुखड़ा रोने लगी। महिला को रोता देख उस सन्यासी ने पूछा कि क्या हुआ माता?
Sanyasi Ki Hindi Kahaniya
तुम रो क्यों रही हो? महिला ने कहा बाबा मेरा पति मुझसे बहुत प्रेम करता था। लेकिन जब से वह युद्ध करके वापस घर लौटा है। तब से वह ठीक तरह से बात भी नहीं करता है। युद्ध लोगों के साथ ऐसा ही करता है सन्यासी ने उत्तर दिया। फिर महिला ने रोते हुए कहा कि बाबा लोगों से मैंने सुना है कि आपकी दी हुई जड़ी-बूटियों से इंसानों में दोबारा प्रेम उत्पन्न हो सकती है।

इसलिए मुझे वो जड़ी-बूटी दे दीजिए। ताकि मैं भी अपनी पति का प्रेम दोबारा पा सकूं। महिला ने विनती करते हुए कहा। पहले तो कुछ देर तक उन्होंने सोच विचार किया। फिर सन्यासी ने उत्तर दिया की माता मैं तुम्हें वह जड़ी-बूटी जरूर दे देता। लेकिन उसे बनाने के लिए एक ऐसी चीज की आवश्यकता होती है जो मेरे पास नहीं है।

आपको क्या चाहिए? मुझे बताइए मैं लेकर आऊंगी महिला बोली। सन्यासी ने उत्तर दिया मुझे बाघ की मूंछ का एक बाल चाहिए। अगले दिन वह महिला जंगल की तरफ बाघ की तलाश में निकल पड़ी। बहुत खोजने पर उसे नदी किनारे एक बाघ दिखा। बाघ उसे देखते ही दहारा महिला डर गई और तेजी से वापस चली गई। अगले कुछ दिनों तक यही हुआ। महिला हिम्मत करके उस बाघ के पास पहुंचती थी और डर कर वापस चली जाती थी।

धीरे-धीरे महीनों बीत गए। अब बाघ को भी महिला की मौजूदगी की आदत पड़ गई और वह उसे देख कर भी सामान्य ही रहता था। अब तो महिला बाघ के लिए मांस भी लाने लगी। बाघ भी बड़े चाव से मांस खाता। धीरे-धीरे बाघ और उस महिला की दोस्ती बढ़ने लगी। अब महिला बीच-बीच में बाघ के शरीर को सहलाने भी लगी थी। बाघ को भी आनंद आता था।

देखते ही देखते एक दिन उस महिला ने हिम्मत दिखाते हुए बाघ की मूंछ का एक बाल निकाल लिया। फिर क्या था वह बिना समय गवाएं उस बाल को लेकर उस सन्यासी के पास पहुंच गई। और बोली कि बाबा मैं बाघ की मूंछ का बाल ले आई हूं। अब मुझे जल्दी से जड़ी-बूटी बना कर दे दीजिए। बहुत अच्छा और ऐसा कहते हुए सन्यासी ने उस बाल को जलती हुई अग्नि में फेंक दिया।

अरे! यह क्या बाबा? आप नहीं जानते इस बाल को लाने में मैंने कितनी प्रयत्न किया है। अपनी जान को भी जोखिम में डाला है और आपने इससे जला दिया। अब मेरी जड़ी-बूटी कैसे बनेगी, महिला ने घबराते हुए कहा। सन्यासी ने उत्तर दिया। देवी अब तुम्हें किसी जड़ी-बूटी की कोई आवश्यकता नहीं है। जरा सोचो तुमने बाघ जैसे हिंसक जीव को किस तरह अपने वश में किया।

हिंसक पशु को भी धैर्य और प्रेम से जीता जा सकता है तो क्या एक इंसान को नहीं? जाओ जिस तरह तुमने बाघ से मित्रता की उसी तरह अपने पति के अंदर भी प्रेम की भावना को जागृत करो। महिला सन्यासी की बात को समझ चुकी थी। उसने सन्यासी को धन्यवाद दिया और वह अपने घर की ओर लौट गई क्योंकि उसे उसकी जड़ी-बूटी मिल चुकी थी।

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि कठिन से कठिन काम को भी धैर्य और प्रेम के साथ पूरा किया जा सकता है इसलिए कभी भी धैर्य और प्रेम का दामन नहीं छोड़ना चाहिए

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बुढ़िया का भरोसा। Hindi Kahaniya on Believing God

बुढ़िया का भरोसा। Hindi Kahaniya on Believing God

बुढ़िया का भरोसा। Hindi Kahaniya on Believing God-: एक बार की बात है। लखनऊ में एक बहुत ही जाने-माने कैंसर के चिकित्सक रहते थें, जिनका नाम डॉक्टर रमेश बाबू था। एक बार उन्हें नई दिल्ली में लाइफटाइम अचीवमेंट आवार्ड से सम्मानित करने के लिए बुलाया गया। इस आवार्ड को लेकर डॉक्टर साहब ही नहीं। बल्कि पूरे लखनऊ के लोग काफी उत्साहित थे। क्योंकि रमेश बाबू एक बहुत ही काबिल डॉक्टर थे। वह हमेशा लोगों की मदद किया करते थे।
Lord Krishna Moral Stories In Hindi
अगले दिन डॉ साहब दिल्ली जाने के लिए एयरपोर्ट की ओर निकल पड़े। परंतु जब वह एयरपोर्ट पहुंचे। तब उन्हें पता चला कि मौसम खराब होने की वजह से सारे फ्लाइट को रद्द कर दिया गया है। और दुर्भाग्य से उस दिन की सभी फ्लाइट को रद्द कर दिया गया था। यह देख डॉ साहब सोचते हैं कि चलो कोई बात नहीं। कार्यक्रम तो शाम के 7:00 बजे है और दिल्ली से लखनऊ जाने में 6 से 7 घंटे लगते हैं। इसलिए टेक्सी से ही निकल जाता हूं।

यह सोच कर जल्दी से उन्होंने एक टैक्सी बुक किया। और उस में बैठकर वह दिल्ली की ओर निकल पड़े। आधे रास्ते तो ठीक से चला। अचानक कुछ देर बाद ड्राइवर ने देखा कि बहुत बड़ा जाम लगा है। उसने तुरंत डॉक्टर साहब से कहा आगे बहुत बड़ा जाम है। अगर हम इस रास्ते से जाएंगे तो हमें पहुंचने में काफी रात हो जाएगी। यदि आप कहें तो दूसरा रास्ता ट्राय करूं। पहले तो डॉक्टर साहब मना कर देते हैं।

फिर 10-15 मिनट बाद भी जाम वैसे की ही वैसे रहती है। तब फिर डॉ साहब ड्राइवर से कहते हैं कि ठीक है। हम दूसरे रास्ते से ही चलते हैं। इधर ड्राइवर गाड़ी को रिवर्स लेकर एक दूसरे रास्ते से चलने लगता है। उबड़-खाबड़ रास्तों पर घंटों चलने के बाद भी कोई पक्की सड़क का रास्ता नहीं मिल पाता है, जिससे डॉक्टर साहब काफी मायूस हो जाते हैं।

तभी डॉ साहब को कुछ दूर पर एक झोपड़ी दिखाई देती है। ड्राईवर तुरंत कार रोकता है और उस झोपड़ी के पास उतरकर पूछता है कोई है? तभी झोपड़ी से एक बुढ़िया बाहर निकलती है और पूछती है क्या बात है बेटे क्यों पुकार रहे हो? ड्राईवर ने बड़ी विनम्रता से कहा माता जी हम दिल्ली जा रहे थे। परंतु रास्ता भटक गए हैं। क्या आप हमें सही रास्ता बताने में मदद कर सकते हैं?

बिल्कुल मदद करूंगी बुढ़िया ने उत्तर दिया। बेटे पहले आप लोग आकर पानी पी लीजिए। बुढ़िया अंदर गई और झट से पानी और गुड़ लाकर दोनों को दिया। डॉ साहब उस बुढ़िया के सत्कार से बहुत खुश हो गए और उन्होंने पूछा कि क्या आप यहां अकेली रहती हैं? उस बुढ़िया ने जवाब दिया नहीं-नहीं मेरे साथ मेरा एक पोता भी रहता है, जिसके माता-पिता बचपन में ही गुजर गए, तब से मैं ही उसका ख्याल रखती हूं, देखिए ना वह बीमार पड़ा है। शायद कुछ दिनों बाद वह भी मुझे छोड़कर चला जाएगा।

यह कहते हुए बुढ़िया की आंखों से आंसू निकलने लगे। तब डॉक्टर साहब आगे बढ़ते हैं और उसे सांत्वना देते हुए कहते हैं कि इस बालक को क्या हुआ? बुढ़िया ने उत्तर दिया। इसे कैंसर है साहब। लोग कहते हैं कि इसका इलाज लखनऊ के प्रसिद्ध डॉक्टर रमेश बाबू ही कर सकते हैं। मैंने कई बार उनके अस्पताल के चक्कर भी लगाए।

परंतु डॉक्टर साहब से मुलाकात नहीं हो पाई। अब तो सब कुछ कृष्ण भगवान पर छोड़ दिया है। अगर मैंने सच्चे मन से उनकी भक्ति की होगी तो एक दिन वह मेरी मदद जरुर करेंगे। यह सुनते ही डॉक्टर साहब का गला रुंध गया और उनकी आंखों में आंसू आ गए। सोचने लगे कि कैसे इस बूढ़ी औरत का भगवान पर भरोसा हकीकत बन गया।

कैसे ऊपर वाले ने अपने भक्तों के यहां मुझे भेजा। फिर उन्होंने कहा कि बूढी माता मैं ही डॉ रमेश बाबू हूँ। मुझे कृष्ण भगवान ने ही तुम्हारे पास भेजा है। यह सुन बुढ़िया की आंखों में चमक आ गई। उसने कृष्ण भगवान का लाख-लाख धन्यवाद दिया। डॉक्टर साहब ने उस बुढ़िया और उसके पोते को अपने गाड़ी में बैठाया और ड्राइवर से बोले कि लखनऊ के लिए वापस चलो।

यह सुन ड्राइवर ने बड़ी हैरानी से डॉक्टर साहब से कहा लेकिन लाइफटाइम अचीवमेंट आवार्ड! डॉ साहब ने उत्तर दिया कि किसी के जीवन से अधिक मूल्यवान कोई अवॉर्ड नहीं हो सकता। इसलिए गाड़ी को वापस लखनऊ ले चलो। हम आज से ही इस बालक का इलाज शुरू करेंगे।

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। यदि आप सच्चे मन से किसी चीज में भरोसा रखते हैं और उसके लिए हर संभव प्रयास करते हैं तो एक ना एक दिन वह आपको अवश्य ही मिल जाता है।

इसीलिए उस बूढ़ी औरत की तरह दृढ़ विश्वास के साथ अपने काम पर ध्यान लगाइए। कर्म करते रहिए फल कब कहां और कैसे मिलेगा? यह भगवान पर छोड़ दीजिए। अगर आपने सच्चे मन से कर्म किए होंगे तो आपको सही समय आपने पर फल अवश्य मिलेगा।

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गुरुवार, 6 अगस्त 2020

लकड़ी का कटोरा। Short Stories With Moral

लकड़ी का कटोरा। Short Stories With Moral

लकड़ी का कटोरा। Short Stories With Moral-: एक वृद्ध व्यक्ति अपने बेटे और बहू के यहां रहने के लिए शहर गया। उसकी उम्र काफी हो चुकी थी। उम्र के इस पराव में वह अत्यंत कमजोर हो चुका था। उसे ठीक से दिखाई भी नहीं देती थी। उसका शरीर शिथिल हो चुका था और उसके हाथ भी कांपते थे। शहर में उसके बेटे बहू और उसका 8 वर्षीय पोता रहता था। वह वृद्ध अपने बेटे पास गया और रहने लगा।

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जब खाने का समय होता तो पूरे परिवार के लोग टेबल पर खाना खाते थे। लेकिन उसके पिता वृद्ध थे, जिसके कारण उन्हें टेबल पर खाने में उन्हें दिक्कत होती थी। कभी-कभी उनके हाथ से खाने का निवाला भी गिर जाता था। तो कभी चम्मच गिर जाती थी। कभी कभार हाथ से दूध भी गिर जाता था। पहले तो दो तीन दिनों तक उसके बहू और बेटे ने बर्दाश्त किया। परंतु उसके बाद उनसे सहा नहीं जाता था।


उन्हें अपने पिता के इस काम से चीढ़ होने लगी थी। एक रात दोनों ने निर्णय लिया कि हमें इनका कुछ करना चाहिए। क्योंकि इनकी वजह से खाने का सारा मजा किरकिरा हो जाता है और इस तरह से हम अपने चीजों का नुकसान होते हुए भी नहीं देख सकते। अगले दिन उसे बूढ़े व्यक्ति के बेटे ने अपने पिता के लिए एक लकड़ी का कटोरा दिया। ताकि अब और बर्तन न टूट सके।


अपने बूढ़े पिता को घर के एक कोने में भोजन दे दिया। अब वह वहां अकेले बैठकर उस लकड़ी के कटोरा में अपना भोजन करते थे। उसके बेटे-बहू बड़े मजे से टेबल पर खाना खाती थी। सभी लोग आराम से बैठ कर खाना खा रहे थे। कभी कभार उन दोनों की नजर बुजुर्ग की तरफ जाती तो देखते थे कि उनकी आंखों में आंसू दिखाई है। परंतु यह देख उनके बहू-बेटे का मन नहीं पिघलता था।

उनकी छोटी-छोटी गलतियों पर ढेर सारी बातें सुना देते थे। वहां बैठा वह छोटा सा बालक भी बड़े ध्यान से देखता था। और अपने में मस्त रहता था। एक रात खाने से पहले छोटे से बालक को उसके माता-पिता ने जमीन पर बैठकर कुछ बनाते हुए देखा। तब उसके पिता ने पूछा तुम क्या बना रहे हो?
उस बच्चे ने बड़ी मासूमियत के साथ उत्तर दिया

"अरे पिताजी मैं तो आप लोगों के लिए एक लकड़ी का कटोरा बना रहा हूं। ताकि जब आप भी बूढ़े हो जाए तो आप लोगों को इसी लकड़ी के कटोरा में खाना दे सकूं।"

उस छोटे से बालक के मुंह से यह सुन उसके माता पिता पर इसका बहुत गहरा असर हुआ। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। क्योंकि उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका था। दोनों ने उस बूढ़े व्यक्ति से क्षमा मांगी और उस दिन के बाद से उन्होंने कभी भी अपने पिता के साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया। बल्कि हमेशा अपने पिता का बहुत ख्याल रखते थे।

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कई बार हम अपने बच्चों को तो नैतिक शिक्षा देते हैं। परंतु स्वयं उसका पालन करना भूल जाते हैं। यदि हम स्वयं बड़ों का आदर करेंगे। तभी हमारे बच्चे भी बड़ों का आदर करेंगे।

इसलिए कभी भी अपने माता पिता के साथ ऐसा व्यवहार ना करें कि कल को आप की संतान भी आपके लिए एक लकड़ी का कटोरा तैयार करने लगे।

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प्रेरणादायक कहानी : अंधा घोड़ा और मालिक। Two Blind Horse

प्रेरणादायक कहानी : अंधा घोड़ा और मालिक। Two Blind Horse

प्रेरणादायक कहानी : अंधा घोड़ा और मालिक। Two Blind Horse-: हरिपुर नामक गांव में हरिलाल नाम का एक व्यापारी रहता था। वह घोड़ा पालने का काम करता था। उसके पास बहुत सारे घोड़े थे। परंतु वह अन्य घोड़ों की अपेक्षा दो घोड़े से अधिक प्यार करते थे। और दोनों घोड़े भी अपने मालिक से बहुत प्यार करते थे। उन दोनों घोड़ों में से एक अंधा घोड़ा था। परंतु दूर से देखने पर दोनों घोड़े एक जैसे ही दिखते थे।
Moral Stories For Kids
निकट जाने पर ही पता चलता था कि उनमें से एक अंधा घोड़ा है। दोनों घोड़े बहुत फुर्तीले और शानदार थे। अपने एक घोड़े के अंधे होने के बाद भी हरिलाल उसे अपने अस्तबल से बाहर नहीं निकालता था। बल्कि उस अंधे घोड़े का बहुत ज्यादा ध्यान रखता था। ताकि उसे किसी तरह की कोई परेशानी ना हो।

दूसरा घोड़ा भी अपने मित्र अंधे घोड़े की हमेशा मदद करता था। हरिलाल ने उस अंधे घोड़े के गले में एक घंटी बांध दी थी। ताकि जब भी वह इधर-उधर घूमे तो उसे पता चल सके। और वह उसकी मदद कर सके। जब भी दोनों घोड़े घास चरने के लिए कहीं बाहर निकलते। तब वह दोनों घोड़े एक साथ चलते थे। अंधे घोड़े हमेशा दूसरे घोड़े के पीछे-पीछे चलता था।

जबकि वह दूसरा घोड़ा आगे-आगे चलता था। वह सुनिश्चित करता था कि आगे का मार्ग साफ हो। तभी वह अंधे घोड़े को अपने पीछे-पीछे आने के लिए इशारा करता था। उसके बाद ही दोनों घोड़े आगे बढ़ते थे। इस तरह से दोनों घोड़े एक दूसरे को बहुत प्यार करते थे। उसके मालिक हरिलाल भी उन दोनों का बहुत ध्यान रखता था।
इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि उस अंधे घोड़े के मालिक की तरह ही भगवान हमारा साथ इसलिए नहीं छोड़ते क्योंकि हमारे अंदर कोई दोष या कमियां है। वो हमारा ख्याल रखते हैं

भगवान जरुरत के समय किसी ना किसी को हमारी मदद के लिए अवश्य भेज देते हैं। इसलिए कभी भी संकट के समय अपने मित्र, सगे-संबंधी का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। बल्कि उस संकट के समय उनका अधिक से अधिक ध्यान रखना चाहिए।

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मंगलवार, 4 अगस्त 2020

प्रेरणादायक कहानी : चार मोमबत्तियां। Candles Moral Story

प्रेरणादायक कहानी : चार मोमबत्तियां। Candles Moral Story

प्रेरणादायक कहानी : चार मोमबत्तियां। Candles Moral Story-: एक घर में चार मोमबत्तियां जल रही थी। उन चारों मोमबत्तियां का नाम इस प्रकार से है- पहली मोमबत्ती का नाम शांति, दूसरी का विश्वास, तीसरी का प्रेम और चौथी मोमबत्ती का नाम आशा था। चारों एक साथ एक ही कमरे में जल रही थी। जिससे पूरा कमरा प्रकाशित हो रहा था।

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शांति-: तभी पहली मोमबत्ती ने बांकी अन्य मोमबत्तियां से कहा कि मैं शांति हूं। परंतु मुझे लगता है कि इस दुनिया को मेरी आवश्यकता नहीं है। हर तरफ लूट मार मची हुई है। मैं इससे अब तंग आ चुकी हूं। और अब मुझसे सहा नहीं जाता। यह कहते हुए वह मोमबत्ती बुझ गई।

विश्वास-: दूसरी मोमबत्ती ने कहा विश्वास हूं। परंतु आज के वर्तमान युग में किसी को भी एक दूसरे पर विश्वास नहीं है। सभी एक दूसरे से अपने मतलब के लिए ही मित्रता करते हैं। इसलिए मेरी भी लोगों की आवश्यकता नहीं है। यह कहते हुए दूसरी मोमबत्ती भी बुझ गई।
प्रेम-: पहली और दूसरी मोमबत्ती को बुझता देख तीसरी मोमबत्ती ने कहा मैं प्रेम हूं। मेरे पास अंत तक जलते रहने की ताकत है। परंतु आज के इस वर्तमान युग में किसी के पास इतना समय नहीं है कि वह एक दूसरे से प्रेम कर सके।

सभी अपने-अपने मतलब के लिए एक दूसरे का इस्तेमाल करते हैं। चूँकि इस दुनिया में अब सच्चा प्रेम नहीं है। इसलिए मैं अब यहां और अधिक समय तक नहीं रह सकती। मैं भी जा रही हूं यह कहते हुए तीसरी मोमबत्ती भी बुझ गई।

वह अभी बुझी ही थी कि एक छोटा सा बच्चा उस कमरे में दाखिल हुआ जहां मोमबत्तियां जल रही थी। तीनों मोमबत्तियां को बुझता देख वह बच्चा घबरा गया। उसकी आंखों से आंसू टपकनी लगे। और उसने रोते हुए कहा कि अरे! तुम मोमबत्तियां जल क्यों नहीं रही हो?

तुम्हें तो अंत तक जलते रहना चाहिए। इस कमरे को प्रकाशित करना चाहिए। तुम इस तरह बीच में कैसे छोड़ कर जा सकती हो।

आशा-: तभी चौथी मोमबत्ती अभी भी जल रही थी। उसने उस प्यारे बच्चे से कहा कि घबराओ नहीं। मैं आशा हूं और जब तक मैं जल रही हूं। तब तक तुम बांकी के अन्य मोमबत्तियां को भी जला सकते हो।

यह सुन उस बच्चे की आंखों में चमक आ गई। उसने उस चौथी मोमबत्ती आशा से बांकी के तीनों मोमबत्तियां को भी जला ली। जिससे पूरा कमरा चारों मोमबत्ती की रौशनी से प्रकाशित हो उठा।

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि जब कभी चारों तरफ अंधकार ही अंधकार नजर आए। अपने भी पराए लगने लगे। तब भी आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। क्योंकि आशा में इतनी शक्ति है कि उजड़े हुए दुनिया में भी पुनः प्रकाश ला सकती है।

इसलिए अपनी आशा की मोमबत्ती को हमेशा जलाए रखिए। क्योंकि जब तक यह आशा की किरण आपके अन्दर जल्दी रहेगी। तब तक आपको सफल होने से कोई रोक नहीं सकता।

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प्रेरणादायक कहानी : सफलता का रहस्य । The Secret of Success

प्रेरणादायक कहानी : सफलता का रहस्य । The Secret of Success

प्रेरणादायक कहानी : सफलता का रहस्य । The Secret of Success-: एक बार की बात है। एक नौजवान लड़का जो जीवन में कई बार और असफल हो चुका था। अपने जीवन से बहुत निराश था। उसने सफल होने का भरसक प्रयास किया। किंतु वह उसमें सफल नहीं हो पाया। जिसके कारण वह हमेशा चिंतित रहने लगा। उसे चिंतित देख एक दिन उसके एक मित्र ने उसे सुकरात से मिलने का सुझाव दिया।

Secret Success Story

सुकरात उस समय के बहुत ही प्रसिद्ध व्यक्ति थे। वह हमेशा लोगों को अच्छी-अच्छी बातों की शिक्षा दिया करते थे। वह नौजवान व्यक्ति बहुत खुश हुआ। अगले दिन वह सुकरात से मिलने के लिए उनके घर पहुंचा। तब सुकरात ने उस नौजवान व्यक्ति से आने का कारण पूछा?

उस नौजवान व्यक्ति ने जवाब दिया कि उसने कई बार प्रयत्न किया। परंतु फिर भी वह अपने जीवन में असफल ही रहा। इसलिए मैं जानना चाहता हूं कि सफलता का रहस्य क्या है? सुकरात ने उस लड़के को अगले दिन नदी किनारे बुलाया।

लड़का कल होकर समय पर उस नदी के तट पर पहुंचा, जहां सुकरात ने उसे बुलाया था। सुकरात उस लड़के को नदी की तरफ आने को कहा। सुकरात के आज्ञानुसार वह लड़का धीरे-धीरे पानी में उतरने लगा। जब वह लड़का गले तक पानी में उतर गया तब अचानक सुकरात ने उस लड़के का सर पकड़कर पानी में डुबो दिया।

लड़के ने बाहर निकलने का बहुत प्रयत्न किया। उसका सभी प्रयास व्यर्थ रहा। क्योंकि सुकरात उस लड़के की अपेक्षा अधिक ताकतवर थे। सुकरात ने उसके सर को कुछ समय तक पानी में दबाए रखा। और तब तक दबाए रखा जब तक उस लड़के का शरीर नीला ना पड़ने लगा। फिर अचानक सुकरात ने उसके सर को बाहर निकाल लिया।

बाहर निकलते ही उस लड़के ने हाफ्तें-हाफ्तें पहले तेजी से सांस लिया। सुकरात से ऐसा करने का कारण पूछा? सुकरात ने उत्तर दिया कि जब तुम पानी के अंदर थे तब तुम्हें सबसे अधिक आवश्यकता किस चीज की थी? तब लड़के ने जवाब दिया कि "सांस लेना"।

सुकरात ने कहा यही सफलता का रहस्य है। लड़का समझ नहीं पाया। तब सुकरात ने उसे विस्तार से समझाया कि जब तुम सफलता को भी उतनी ही शिद्दत से चाहोगे, जिस तरह से तुम सांस लेना चाहते थे तो तुम्हें सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। क्योंकि यही सफलता का रहस्य है।

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी धैर्य का दामन नहीं छोड़ना चाहिए और लगातार एक ही लक्ष्य पर अपना सारा ध्यान लगाना चाहिए। क्योंकि यही सफलता का रहस्य है। जिसे अपनाकर कोई भी व्यक्ति जीवन में ऊंचाइयों को छू सकता है।

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शनिवार, 1 अगस्त 2020

शिक्षाप्रद कहानियाँ - बड़ी सोच का बड़ा जादू । Success Story

शिक्षाप्रद कहानियाँ -  बड़ी सोच का बड़ा जादू । Success Story

शिक्षाप्रद कहानियाँ -  बड़ी सोच का बड़ा जादू । Success Story-: एक गांव में चंद्रमोहन नाम का एक अत्यंत ही गरीब ब्राम्हण रहता था। उसके पास धन की कमी थी, जिसके कारण उस का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा था। उसे एक पुत्र था जिसका नाम सतीश था। सतीश पढ़ने में बहुत तेज था और पढ़ाई के साथ-साथ वह अपने पिता के कामों में भी हाथ बटाता था।

Big Thinking Success Story

एक दिन सतीश नौकरी की खोज में शहर की ओर निकल पड़ा। चूँकि शहर उसके गांव से दूर था। इसलिए वह शहर जाने के लिए एक ट्रेन में बैठ गया। उसके घर में कभी कभार ही सब्जी बनती थी। इसलिए सतीश ने रास्ते में खाने के लिए सिर्फ रोटियां ही रखी थी। रेलगाड़ी में आधा दिन बीत जाने के पश्चात सतीश को भूख लगी। उसने अपनी झोली में से रोटियां निकाली और खाने लगा।

उसके खाने का तरीका बहुत अलग था। वह रोटी का एक टुकड़ा लेता और उसे टिफिन के अंदर इस तरह से डालता मानो वह रोटी के साथ कुछ और भी खा रहा हो।

जबकि उसके पास सिर्फ रोटियां ही थी। उसके आसपास के लोग उसके खाने के तरीके को देख हैरान थे। सभी सोच रहे थे कि आखिर यह झूठ-मूठ का टिफिन में रोटी का टुकड़ा डालता है और ऐसे खा रहा है जैसे टिफिन में कुछ और भी है।

यह ऐसे क्यों खा रहा है? सभी के मन में यह प्रश्न चल रहा था। परंतु किसी ने भी हिम्मत करके सतीश से पूछना उचित नहीं समझा। तभी उन्ही में से एक व्यक्ति ने सतीश से पूछ ही लिया कि भैया तुम इस तरह से क्यों खा रहे हो?

तुम्हारे पास तो सब्जी है ही नहीं फिर भी तुम रोटी के टुकडे को हर बार खाली टिफिन में डालकर इस प्रकार से खा रहे हो जैसे कि तुम्हारे टिफिन में सब्जी हो।

उसकी बात सुन सतीश ने बड़ी ही विनम्रता से उत्तर दिया कि भैया इस खाली टिफिन में सब्जी नहीं है। लेकिन मैं अपने मन में यह सोच कर खा रहा हूं कि इसमें बहुत ही स्वादिष्ट आचार है। और मैं उसी आचार के साथ रोटी खा रहा हूं।

उस व्यक्ति ने पुनः पूछा कि क्या खाली टिफिन में आचार सोचकर तुम जो रोटी खा रहे हो तो क्या तुम्हें आचार का स्वाद आ रहा है?

हां बिल्कुल आ रहा है, सतीश ने जवाब दिया। वहीं पास में ही एक महात्मा भी बैठे हुए थे। बड़े ध्यान से वे इस घटना को देख रहे थे। सतीश का यह उत्तर सुन, उस महात्मा ने कहा कि बालक "जब तुम्हें सोचना ही था तो तुम आचार की जगह मटर पनीर सोचते या फिर शाही पनीर सोचते" तुम्हें इसका स्वाद भी मिल ही जाता।

Poor Man Big Thinking Story

क्योंकि तुमने ही कहा कि तुम्हें खाली टिफिन में आचार सोच कर खाने से तुम्हें आचार का स्वाद मिल रहा है। यदि तुम स्वादिष्ट चीजों के बारे में सोचते तो तुम्हें उनका स्वाद जरूर आता। जब सोचना ही था तो छोटा सोचने में समय क्यों व्यर्थ करना? तुम्हें तो तो बड़ा सोचना चाहिए था।

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि आप जितना बड़ा सोचेंगे आप अपने जीवन में उतने ही अधिक ऊंचाइयों तक पहुंच पाएंगे। इसलिए हमेशा जीवन में बड़े लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। और उससे प्राप्त करने के लिए अपने आपको उस लक्ष्य के प्रति समर्पित कर देना चाहिए।

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प्रेरणादायक कहानियां : मजदूर किसान के जूते - Moral Stories

प्रेरणादायक कहानियां : मजदूर किसान के जूते - Moral Stories

प्रेरणादायक कहानियां : मजदूर किसान के जूते - Moral Stories-: हनुमानपुर नामक गावं में एक छोटा सा गुरुकुल था। जहाँ रमेश नाम का एक लड़का पढता था। रमेश के पिता एक बहुत बड़े व्यापारी थे। इसलिए रमेश को किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। चूँकि रमेश को जरूरतें की सभी चीज समय पर मिल जाती थी। इसलिए वह पढ़ने-लिखने में ध्यान नहीं देता था।

Shoe of Poor Farmer
वह बहुत शरारती लड़का था और हमेशा गरीब और निर्धन बच्चों को तंग करते रहता था। रमेश के इसी आदत से उसके गुरुकुल के सभी बच्चे और वहां के शिक्षक परेशान रहते था। शिक्षकों के कई बार समझाने पर भी रमेश पर कोई असर नहीं होता था।
एक दिन उसी गुरुकुल के एक शिक्षक के साथ रमेश बाहर टहलने के लिए गया हुआ था। तभी उन्होंने देखा कि रास्ते में पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते सड़क किनारे रखे हुए हैं। जो संभवतः पास के खेत के समीप काम कर रहे एक गरीब मजदूर के थे, जो अपना काम खत्म करके घर वापस जाने की तैयारी कर रहा था। तभी रमेश को एक मजाक सूझा। उसने अपने गुरु जी से कहा कि गुरुजी क्यों ना इस फटे-पुराने जूते को झाड़ियों में कहीं छिपा दिया जाय। ताकि जब वह गरीब मजदूर इस जूते को ढूंढते हुए आए तो इसे ना पाकर वह बहुत घबरा जायेगा, जिसे देख बहुत मजा आ जायेगा।

रमेश के इस बात को सुन उसके शिक्षक ने बड़ी गंभीरता से कहा कि रमेश किसी गरीब के साथ इस तरह का भद्दा मजाक करना उचित नहीं है। क्यों न हम इन पुराने जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और झाड़ी के पीछे छिप कर देखें कि उस गरीब मजदूर पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? रमेश ने अपनी शिक्षक की बात मान ली और उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकालकर उस पुराने जूते में डाल दिया और दोनों एक झाड़ी के पीछे छिपकर कर देखने लगे। वह गरीब किसान जल्दी ही अपना काम खत्म करके अपने जूतों के पास पहुंचा। उसने जैसी ही अपने एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का अनुभव हुआ। उसने जल्दी से जूते को हाथ में लिया और देखने लगा कि जूते में क्या है? उसने देखा कि जूते के अंदर कुछ सिक्के रखे हुए थे। उस से बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने सिक्के को हाथ में लेकर बड़े गौर से उसे देखने लगा। फिर कुछ देर तक वह अपने आसपास नजर घुमाने लगा। उसे दूर दूर तक कोई नजर नहीं आया तो उसने उस सिक्के को अपनी जेब में रख लिया। अब उसने अपना दूसरा जूता उठाया और पहनने लगा। फिर उसे कुछ कठोर चीज का अनुभव हुआ। उसने देखा कि उसमें भी कुछ सिक्के पड़े हुए थे। मजदूर उसे देख कर और भी हैरान हो गया। वह बहुत भावुक हो गया था। और उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसने हाथ जोड़कर ऊपर देखते हुए इश्वर से प्रार्थना कि है ईश्वर इस विकट समय में जो आपने मेरी इस प्रकार मदद की है। इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आज आपकी सहायता और उदारता के कारण ही मेरी बीमार पत्नी को दवाई और भूखे बच्चों को भोजन मिल सकेगी। यह कहते हुए किसान खुशी-खुशी अपने घर की ओर चल दिया। उस गरीब किसान की बात सुनकर रमेश की आंखों में आंसू आ गए। तब उसके शिक्षक ने उससे पूछा कि रमेश क्या हुआ तुम्हारी आंखें क्यों भर आई? क्या तुम्हारी मजाक वाली बात की अपेक्षा जूते में सिक्के डालने से कम खुशी मिली क्या?
तब रमेश ने जवाब दिया कि गुरुजी आज मुझे जो आपने महत्वपूर्ण सीख दी है। उसी में जीवन भर याद रखूंगा। आज मैं उन शब्दों का अर्थ समझ गया हूं जिसे मैंने पहले कभी नहीं समझा था। लेने की अपेक्षा किसी व्यक्ति को देने में सबसे अधिक आनंद आता है।

Inspirational Quotes of Poor Farmer


इसलिए आज के बाद मैं कभी किसी निर्धन व्यक्ति का मजाक नहीं उड़ा उड़ाउंगा और सदा उनकी मदद करने को तत्पर रहूंगा। रमेश की बात सुनकर शिक्षक ने उसे गले से लगा लिया और दोनों वापस अपने गुरुकुल की ओर लौट गए। इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी निर्धन व्यक्ति का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए और जहां तक संभव हो सके अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनकी मदद करनी चाहिए।

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