प्रेरणादायक कहानियां : मजदूर किसान के जूते - Moral Stories
प्रेरणादायक कहानियां : मजदूर किसान के जूते - Moral Stories-: हनुमानपुर नामक गावं में एक छोटा सा गुरुकुल था। जहाँ रमेश नाम का एक लड़का पढता था। रमेश के पिता एक बहुत बड़े व्यापारी थे। इसलिए रमेश को किसी चीज की कोई कमी नहीं थी। चूँकि रमेश को जरूरतें की सभी चीज समय पर मिल जाती थी। इसलिए वह पढ़ने-लिखने में ध्यान नहीं देता था।
वह बहुत शरारती लड़का था और हमेशा गरीब और निर्धन बच्चों को तंग करते रहता था। रमेश के इसी आदत से उसके गुरुकुल के सभी बच्चे और वहां के शिक्षक परेशान रहते था। शिक्षकों के कई बार समझाने पर भी रमेश पर कोई असर नहीं होता था।
एक दिन उसी गुरुकुल के एक शिक्षक के साथ रमेश बाहर टहलने के लिए गया हुआ था। तभी उन्होंने देखा कि रास्ते में पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते सड़क किनारे रखे हुए हैं। जो संभवतः पास के खेत के समीप काम कर रहे एक गरीब मजदूर के थे, जो अपना काम खत्म करके घर वापस जाने की तैयारी कर रहा था।
तभी रमेश को एक मजाक सूझा। उसने अपने गुरु जी से कहा कि गुरुजी क्यों ना इस फटे-पुराने जूते को झाड़ियों में कहीं छिपा दिया जाय। ताकि जब वह गरीब मजदूर इस जूते को ढूंढते हुए आए तो इसे ना पाकर वह बहुत घबरा जायेगा, जिसे देख बहुत मजा आ जायेगा।
रमेश के इस बात को सुन उसके शिक्षक ने बड़ी गंभीरता से कहा कि रमेश किसी गरीब के साथ इस तरह का भद्दा मजाक करना उचित नहीं है।
क्यों न हम इन पुराने जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और झाड़ी के पीछे छिप कर देखें कि उस गरीब मजदूर पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है? रमेश ने अपनी शिक्षक की बात मान ली और उसने अपनी जेब से कुछ सिक्के निकालकर उस पुराने जूते में डाल दिया और दोनों एक झाड़ी के पीछे छिपकर कर देखने लगे। वह गरीब किसान जल्दी ही अपना काम खत्म करके अपने जूतों के पास पहुंचा।
उसने जैसी ही अपने एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का अनुभव हुआ। उसने जल्दी से जूते को हाथ में लिया और देखने लगा कि जूते में क्या है? उसने देखा कि जूते के अंदर कुछ सिक्के रखे हुए थे। उस से बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने सिक्के को हाथ में लेकर बड़े गौर से उसे देखने लगा।
फिर कुछ देर तक वह अपने आसपास नजर घुमाने लगा। उसे दूर दूर तक कोई नजर नहीं आया तो उसने उस सिक्के को अपनी जेब में रख लिया। अब उसने अपना दूसरा जूता उठाया और पहनने लगा। फिर उसे कुछ कठोर चीज का अनुभव हुआ। उसने देखा कि उसमें भी कुछ सिक्के पड़े हुए थे। मजदूर उसे देख कर और भी हैरान हो गया। वह बहुत भावुक हो गया था। और उसकी आंखों में आंसू आ गए।
उसने हाथ जोड़कर ऊपर देखते हुए इश्वर से प्रार्थना कि है ईश्वर इस विकट समय में जो आपने मेरी इस प्रकार मदद की है। इसके लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। आज आपकी सहायता और उदारता के कारण ही मेरी बीमार पत्नी को दवाई और भूखे बच्चों को भोजन मिल सकेगी। यह कहते हुए किसान खुशी-खुशी अपने घर की ओर चल दिया।
उस गरीब किसान की बात सुनकर रमेश की आंखों में आंसू आ गए। तब उसके शिक्षक ने उससे पूछा कि रमेश क्या हुआ तुम्हारी आंखें क्यों भर आई? क्या तुम्हारी मजाक वाली बात की अपेक्षा जूते में सिक्के डालने से कम खुशी मिली क्या?
तब रमेश ने जवाब दिया कि गुरुजी आज मुझे जो आपने महत्वपूर्ण सीख दी है। उसी में जीवन भर याद रखूंगा। आज मैं उन शब्दों का अर्थ समझ गया हूं जिसे मैंने पहले कभी नहीं समझा था। लेने की अपेक्षा किसी व्यक्ति को देने में सबसे अधिक आनंद आता है।
इसलिए आज के बाद मैं कभी किसी निर्धन व्यक्ति का मजाक नहीं उड़ा उड़ाउंगा और सदा उनकी मदद करने को तत्पर रहूंगा। रमेश की बात सुनकर शिक्षक ने उसे गले से लगा लिया और दोनों वापस अपने गुरुकुल की ओर लौट गए।
इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी किसी निर्धन व्यक्ति का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए और जहां तक संभव हो सके अपनी सामर्थ्य के अनुसार उनकी मदद करनी चाहिए।
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