शनिवार, 1 अगस्त 2020

शिक्षाप्रद कहानियाँ - बड़ी सोच का बड़ा जादू । Success Story

शिक्षाप्रद कहानियाँ -  बड़ी सोच का बड़ा जादू । Success Story

शिक्षाप्रद कहानियाँ -  बड़ी सोच का बड़ा जादू । Success Story-: एक गांव में चंद्रमोहन नाम का एक अत्यंत ही गरीब ब्राम्हण रहता था। उसके पास धन की कमी थी, जिसके कारण उस का गुजारा बड़ी मुश्किल से चल रहा था। उसे एक पुत्र था जिसका नाम सतीश था। सतीश पढ़ने में बहुत तेज था और पढ़ाई के साथ-साथ वह अपने पिता के कामों में भी हाथ बटाता था।

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एक दिन सतीश नौकरी की खोज में शहर की ओर निकल पड़ा। चूँकि शहर उसके गांव से दूर था। इसलिए वह शहर जाने के लिए एक ट्रेन में बैठ गया। उसके घर में कभी कभार ही सब्जी बनती थी। इसलिए सतीश ने रास्ते में खाने के लिए सिर्फ रोटियां ही रखी थी। रेलगाड़ी में आधा दिन बीत जाने के पश्चात सतीश को भूख लगी। उसने अपनी झोली में से रोटियां निकाली और खाने लगा।

उसके खाने का तरीका बहुत अलग था। वह रोटी का एक टुकड़ा लेता और उसे टिफिन के अंदर इस तरह से डालता मानो वह रोटी के साथ कुछ और भी खा रहा हो।

जबकि उसके पास सिर्फ रोटियां ही थी। उसके आसपास के लोग उसके खाने के तरीके को देख हैरान थे। सभी सोच रहे थे कि आखिर यह झूठ-मूठ का टिफिन में रोटी का टुकड़ा डालता है और ऐसे खा रहा है जैसे टिफिन में कुछ और भी है।

यह ऐसे क्यों खा रहा है? सभी के मन में यह प्रश्न चल रहा था। परंतु किसी ने भी हिम्मत करके सतीश से पूछना उचित नहीं समझा। तभी उन्ही में से एक व्यक्ति ने सतीश से पूछ ही लिया कि भैया तुम इस तरह से क्यों खा रहे हो?

तुम्हारे पास तो सब्जी है ही नहीं फिर भी तुम रोटी के टुकडे को हर बार खाली टिफिन में डालकर इस प्रकार से खा रहे हो जैसे कि तुम्हारे टिफिन में सब्जी हो।

उसकी बात सुन सतीश ने बड़ी ही विनम्रता से उत्तर दिया कि भैया इस खाली टिफिन में सब्जी नहीं है। लेकिन मैं अपने मन में यह सोच कर खा रहा हूं कि इसमें बहुत ही स्वादिष्ट आचार है। और मैं उसी आचार के साथ रोटी खा रहा हूं।

उस व्यक्ति ने पुनः पूछा कि क्या खाली टिफिन में आचार सोचकर तुम जो रोटी खा रहे हो तो क्या तुम्हें आचार का स्वाद आ रहा है?

हां बिल्कुल आ रहा है, सतीश ने जवाब दिया। वहीं पास में ही एक महात्मा भी बैठे हुए थे। बड़े ध्यान से वे इस घटना को देख रहे थे। सतीश का यह उत्तर सुन, उस महात्मा ने कहा कि बालक "जब तुम्हें सोचना ही था तो तुम आचार की जगह मटर पनीर सोचते या फिर शाही पनीर सोचते" तुम्हें इसका स्वाद भी मिल ही जाता।

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क्योंकि तुमने ही कहा कि तुम्हें खाली टिफिन में आचार सोच कर खाने से तुम्हें आचार का स्वाद मिल रहा है। यदि तुम स्वादिष्ट चीजों के बारे में सोचते तो तुम्हें उनका स्वाद जरूर आता। जब सोचना ही था तो छोटा सोचने में समय क्यों व्यर्थ करना? तुम्हें तो तो बड़ा सोचना चाहिए था।

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि आप जितना बड़ा सोचेंगे आप अपने जीवन में उतने ही अधिक ऊंचाइयों तक पहुंच पाएंगे। इसलिए हमेशा जीवन में बड़े लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए। और उससे प्राप्त करने के लिए अपने आपको उस लक्ष्य के प्रति समर्पित कर देना चाहिए।

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