प्रेरणादायक कहानी : गर्म कोयले का टुकड़ा। Hot Coal Story
प्रेरणादायक कहानी : गर्म कोयले का टुकड़ा। Hot Coal Story-: एक गांव में चरणदास नामक एक किसान रहता था। उसका एक पुत्र था जिसका नाम रमेश था। रमेश बचपन से ही पढ़ने में बहुत तेज था। चूँकि उसके पिता एक निर्धन परिवार से थे। इसलिए रमेश हमेशा पूरी इमानदारी से पढ़ाई करता था और अपने गांव के विद्यालय में हमेशा पढ़ाई में सबसे आगे रहता था। परंतु जब से वह शहर की कॉलेज में दाखिला लिया। तब से वह अलग अलग सा रहने लगा। रमेश अब अपने घरवालों की बात नहीं सुनता था।
उनसे झूठ बोलता था और हमेशा अनावश्यक खर्चों के लिए पैसों की मांग करता था। अचानक रमेश के व्यवहार में आए इस बदलाव को देख उसके घरवाले चिंतित थे। जब उसके पिता ने कॉलेज में पता किया। तब उन्हें पता चला कि रमेश बुरी संगति में पड़ गया है। उसके कुछ बुरे मित्रों से मित्रता हो गई है जो सिनेमा देखने, ध्रूमपान करने और फिजूलखर्ची करने के आदि थे।
इसी कारण रमेश में भी यह आदत लग गई है। रमेश अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान नहीं देता था। घरवालों के समझाने के बाद भी उसका यही जवाब होता था कि मैं भले ही बुरे लड़कों के साथ रहता हूँ। परंतु उसकी आदत का मुझ पर कोई असर नहीं होता है। क्योंकि मेरे पास अच्छे और बुरे की समझ है। इस तरह दिन बीतता गया और रमेश की परीक्षा का समय आ गया।
रमेश ने परीक्षा तो दी। परंतु उसकी मेहनत पर्याप्त नहीं होने के कारण वह उस परीक्षा में फेल हो गया। हमेशा अच्छे नंबरों से पास होने वाले रमेश के लिए यह एक बहुत दुखद घटना थी। वह अंदर से बिल्कुल टूट चुका था। रमेश अब अपने घर से कहीं बाहर नहीं निकलता और ना ही किसी से ठीक से बात ही करता। वह दिन भर अपने कमरे में ही पड़ा रहता और कुछ न कुछ सोचते रहता।
उसकी इस स्थिति को देख उसके घर वाले काफी चिंतित हो गए। सभी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की। परंतु रमेश पर इसका कोई असर नहीं हुआ। मानो रमेश को सांप सूंघ गया हो। जब यह बात रमेश के गांव के स्कूल के एक प्रिंसिपल को पता चली तो उन्होंने रमेश को एक दिन अपने घर पर बुलाया। ठंड का समय था।
इसलिए उस समय प्रिंसिपल साहब अंगीठी में कोयला डालकर ताप रहे थे। रमेश गया और चुपचाप उनके बगल में बैठ गया। रमेश को ऐसा देख उसके प्रिंसिपल को बहुत बुरा लगा। क्योंकि रमेश उनका प्रिय शिष्यों में से एक था। उन्होंने निश्चय किया कि रमेश को इस स्थिति से जरूर निकालेंगे। कुछ देर बाद प्रिंसिपल साहब अचानक उठे और चिमटी से कोयले एक जलते हुए टुकड़े को निकालकर मिट्टी में डालने लगे। कोयला कुछ देर तक तो गर्मी देता रहा।
परंतु अंततः बुझ गया। यह देख रमेश ने उत्सुक होते हुए पूछा कि प्रिंसपल साहब आपने उस गर्म कोयले के टुकड़े को मिटटी में क्यों डाल दिया? इससे तो वह बेकार हो गया। यदि आप उसे अंगीठी में ही रहने देते तो वह अन्य कोयलों की तरह ही गर्मी देने के काम आता। रमेश की बात सुनकर प्रिंसिपल साहब मुस्कुराए। उन्होंने कहा कि कुछ देर तक अंगीठी से बाहर रहने के कारण यह कोयले का टुकड़ा बेकार नहीं हुआ है।
देखो मैं इस टुकड़े को पुनः इस अंगीठी में डाल देता हूँ। यह कहते हुए उन्होंने उस टुकड़े को मिट्टी से उठाकर अंगीठी में पुनः डाल दिया। उसके बाद प्रिंसपल साहब ने कहा कुछ समझ में आया रमेश! रमेश ने "ना" में सर हिलाया। प्रिंसिपल साहब ने विस्तार में बताया कि तुम भी उस कोयले टुकड़े के समान हो। पहले तुम अच्छी संगति में थे।
पढ़ाई पर ध्यान देते थे और काफी मेहनत करते थे। इसलिए हमेशा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण होते थे। परंतु जिस तरह यह कोयले का टुकड़ा भी मिट्टी में जाने के कुछ देर बाद बुझ गया। तुम भी उसी प्रकार अपने गलत संगत के कारण परीक्षा में असफल हो गए हो। परंतु यह कतई जरुरी नहीं है कि एक बार फेल होने से तुम्हारे अंदर के सभी अच्छे गुण भी समाप्त हो गए हैं।
जैसे कोयले का टुकड़ा मिटटी में रहने के बाद भी बेकार नहीं हुआ और अंगीठी में डालने पर तुरंत धधक कर जलने लगा। ठीक उसी प्रकार तुम भी यदि आज के बाद अच्छी संगत में रहोगे और अच्छा आचरण करोगे। तब तुम पुनः परीक्षा में सफल हो जाओगे।
रमेश प्रिंसिपल साहब की बातों का मतलब समझ चुका था। वह चुपचाप उठा और उसने प्रिंसिपल साहब के चरण को स्पर्श किया और मुस्कुराते हुए अपने भविष्य को बनाने के लिए निकल पड़ा।
इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हो सकता है कि कभी कभी हम भी गलत संगत में पड़ कर अपने जीवन में और असफल हो जाए। परंतु समय रहते हमें अच्छी संगत में पुनः वापस आ जाना चाहिए। ताकि आने वाले भविष्य में हमारा जीवन सुखमय हो।
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