शेर, लोमड़ी और भिक्षुक की कहानी। Lion and Fox Moral Stories
शेर, लोमड़ी और भिक्षुक की कहानी। Lion and Fox Moral Stories-: बहुत समय पहले की बात है। एक बौद्ध भिक्षुक अपने गुरु के साथ आश्रम में रहता था। इस बौद्ध भिक्षुक का नाम नारायण था। नारायण अपने गुरु की बहुत सेवा सत्कार किया करता था। उसकी सेवा से प्रसन्न होकर उसके गुरुजी भी नारायण को बहुत मानते थे। एक दिन नारायण जंगल से लकड़ियां लाने के लिए गया हुआ था।
वह लकड़ियां काट ही रहा था। तभी उसकी नजर एक लोमड़ी पर पड़ी। उसने देखा कि लोमड़ी को हाथ-पांव नहीं है। वह बिना हाथ-पांव के ही जीवित है। लोमड़ी को देख नारायण को बहुत आश्चर्य हुआ। उसने सोचा कि बिना हाथ-पांव के ही लोमड़ी इतनी स्वस्थ कैसे है? अभी नारायण यह सोच ही रहा था।
तभी उसने देखा कि एक शेर उस लोमड़ी की तरफ आ रहा है। शेर को आता देख नारायण झट से एक पेड़ पर चढ़ गया और देखने लगा। उसने देखा कि शेर ने एक हिरण का शिकार किया हुआ है और उसे अपने मुहं में दबाये लोमड़ी के पास पहुँच गया। उसने देखा कि शेर ने कुछ मांस के टुकड़े लोमड़ी को खाने के लिए दे दिया।
यह देख नारायण को अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसे इस बात का आश्रय हो रहा था कि शेर ने लोमड़ी को मारने की बजाए उसे भोजन दे रहा है। यह तो असंभव है। फिर नारायण ने अपने मन में कहा यह भगवान के होने का ही प्रमाण है। उसने स्वयं से कहा कि भगवान जिसे पैदा करते हैं, उसके भोजन की व्यवस्था वह अवश्य करते हैं।
आज से मैं भी इस लोमड़ी की तरह भगवान की दया पर जीवन यापन करूंगा। आज के बाद मेरे भोजन की व्यवस्था भी ईश्वर ही करेगा। यह सोचकर वह एक विरान सी जगह पर गया और एक पेड़ के नीचे बैठ गया। इधर अपने शिष्य को आश्रम में ना पाकर उसके गुरुजी बहुत चिंतित थे। वह उसे ढूंढने जंगल की ओर निचल पड़े।
इधर पहला दिन बीत गया कोई कोई नहीं आया। दूसरे दिन भी गुजर गए परंतु फिर भी नारायण के भोजन की व्यवस्था ना हो सकी। इसी तरह चार दिन बीत गए। लेकिन फिर भी कोई नहीं आया। इधर भोजन ना मिलने के कारण नारायण का शरीर बहुत कमजोर हो चुका था और वह इतना कमजोर हो चुका था कि वह चलने फिरने में भी असमर्थ था।
तभी उसे ढूंढते-ढूंढते उसके गुरुजी वहां पहुंचे। उसकी इतनी दयनीय हालत देख गुरुजी ने नारायण से इसका कारण पूछा। तब नारायण ने पूरी बात बताई। और गुरु जी से बोला कि अब आप ही बताइए कि भगवान इतना निर्दयी कैसे हो सकते हैं?
क्या मेरे भोजन की व्यवस्था वे नहीं कर सकते थे। तब उसके गुरु ने कहा तुमने बिल्कुल ठीक कहा है कि भगवान जिसे जन्म देता है,उसके भोजन की व्यवस्था भी वही करते हैं।
लेकिन तुमने तो समझने में मूर्खता की है। क्या तुम यह नहीं समझे कि भगवान तुम्हें उस शेर की तरह देखना चाहता है ना कि एक लोमड़ी की तरह। अपने गुरु की बात सुन नारायण को अपनी गलती का एहसास हुआ हो गया। उसने अपने गुरु से क्षमा मांगी और फिर दोनों अपने आश्रम की ओर लौट गए।
इस कहानी से सीख-: जीवन में घटित होने वाले किसी भी घटना का अर्थ हम विपरीत निकाल लेते हैं और सारा दोष ईश्वर को ही देने लगते हैं कि ईश्वर ने हमारे साथ अच्छा नहीं किया। जबकि सच तो यह है कि हो सकता है कि ईश्वर ने हमारे लिए कुछ और ही रखा हो।
इसलिए जीवन में घटित होने वाली घटना का हमें शांति से विश्लेषण करना चाहिए और किसी भी निर्णय पर पहुंचने से पूर्व अपने से बुद्धिमान व्यक्ति से सलाह मशवरा अवश्य करनी चाहिए।
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