महात्मा जी का उपदेश। Preaching Motivational Story in Hindi
महात्मा जी का उपदेश। Preaching Motivational Story in Hindi-: एक गांव में एक साधू रहते थे। वे हमेशा भगवान का ध्यान भजन किया करते थे। वह गांव के ही एक मंदिर में रहते थे। उनका जीवन यापन गांव में ही भिक्षा मांग कर चलता था। वे सुबह दोपहर भगवान के भजन में लीन रहते और शाम के समय गांव में भिक्षा मांगने चले जाते थे। भिक्षा में जो कुछ भी उन्हें मिलता, उसी से वह संतुष्ट हो जाते थे और पुनः मंदिर में पहुंचकर भगवान के भजन में लग जाते थे। एक दिन यह महात्मा अपने गावं में भिक्षा मांगे निकल पड़े।
कुछ दूर चलने के पश्चात इन्होंने एक दरवाजे को खटखटाया और बोले भिक्षाम देहि माता! अंदर से एक बूढ़ी औरत बाहर निकली। उसने साधू बाबा से रुकने को कहा। और से घर गई और भिक्षा लेकर वापस आई। उसने साधु बाबा के थैले में भिक्षा देते हुए कहा कि महात्मा जी कोई ऐसा उपदेश दीजिए जो आने वाले भविष्य में काम आ सके। महात्मा जी ने कहा माता आज नहीं कल दूंगा। यह कहकर साधू महाराज वहां से निकल पड़े।
अगले दिन वही साधू बाबा पुनः उसी महिला के घर पहुंचे। दरवाजे पर पहुँचते ही उन्होंने कहा भिक्षाम देहि माता! अन्दर से वही महिला निकली महात्मा जो को थोड़ा रुकने को कहा। उस दिन उस महिला ने अपने घर में खीर बनाया था, जिसमें उसने बादाम-पिसते, काजू ,किसमिस इत्यादि डालकर बनाई थी। वह जल्दी से घर गई और खीर को एक कटोरी में भरकर ले आई।
इधर स्वामी जी ने अपना कमंडल उस महिला की तरफ आगे बढ़ा दिया। महिला जब उस कमंडल में खीर डालने ही वाली थी। तभी अचानक उसने देखा कि कमंडल में गोबर और कुछ कूड़ा-कचड़ा भरा हुआ है। उसके हाथ रुक गए। वह बोली महाराज यह कमंडल तो गंदा है। साधु बाबा ने कहा हां माता गंदा है तो क्या हुआ? तुम इसी कमंडल में खीर डाल दो।
महिला ने कहा नहीं-नहीं महाराज! यदि मैंने इस कमंडल में खीर डाला तो यह खीर खराब हो जाएगा। आप मुझे यह कमंडल दीजिए मैं अभी इसे शुद्ध करके वापस लाती हूँ।
साधु महाराज ने कहा अर्थात यह कमंडल जब साफ हो जाएगा, तभी तुम इसमें खीर डालोगी।
महिला ने उत्तर दिया जी महाराज!
तब महात्मा जी ने कहा मेरा भी यही उपदेश है माता, जब तक अपने मन की चिंताओं का कूड़ा-कचरा साफ नहीं होगा, अपने अंदर अच्छे संस्कार का गुण नहीं होगा। तब तक हर एक उपदेश विष के समान है। यदि सच में उपदेश पाना है तो सर्वप्रथम अपने मन और विचार को शुद्ध करना चाहिए। संस्कारो को अपने जीवन में उतारना चाहिए। तभी सच्चे सुख और आनंद की प्राप्ति हो सकती है।
इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि जब तक हम अपने विचारों को नहीं बदलेंगे। तब तक कितना ही उपदेशों को क्यों न ग्रहण करें ? हमारा कल्याण होना असम्भव है।
इसलिए यदि सच में आप उपदेश को ग्रहण करना चाहते हैं तो अपने मन-विचारों को शुद्ध कीजिये। इसी से सच्चे सुख की प्राप्ति हो सकती है।
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