लकड़ी का कटोरा। Short Stories With Moral
लकड़ी का कटोरा। Short Stories With Moral-: एक वृद्ध व्यक्ति अपने बेटे और बहू के यहां रहने के लिए शहर गया। उसकी उम्र काफी हो चुकी थी। उम्र के इस पराव में वह अत्यंत कमजोर हो चुका था। उसे ठीक से दिखाई भी नहीं देती थी। उसका शरीर शिथिल हो चुका था और उसके हाथ भी कांपते थे। शहर में उसके बेटे बहू और उसका 8 वर्षीय पोता रहता था। वह वृद्ध अपने बेटे पास गया और रहने लगा।
जब खाने का समय होता तो पूरे परिवार के लोग टेबल पर खाना खाते थे। लेकिन उसके पिता वृद्ध थे, जिसके कारण उन्हें टेबल पर खाने में उन्हें दिक्कत होती थी। कभी-कभी उनके हाथ से खाने का निवाला भी गिर जाता था। तो कभी चम्मच गिर जाती थी। कभी कभार हाथ से दूध भी गिर जाता था। पहले तो दो तीन दिनों तक उसके बहू और बेटे ने बर्दाश्त किया। परंतु उसके बाद उनसे सहा नहीं जाता था।
उन्हें अपने पिता के इस काम से चीढ़ होने लगी थी। एक रात दोनों ने निर्णय लिया कि हमें इनका कुछ करना चाहिए। क्योंकि इनकी वजह से खाने का सारा मजा किरकिरा हो जाता है और इस तरह से हम अपने चीजों का नुकसान होते हुए भी नहीं देख सकते। अगले दिन उसे बूढ़े व्यक्ति के बेटे ने अपने पिता के लिए एक लकड़ी का कटोरा दिया। ताकि अब और बर्तन न टूट सके।
अपने बूढ़े पिता को घर के एक कोने में भोजन दे दिया। अब वह वहां अकेले बैठकर उस लकड़ी के कटोरा में अपना भोजन करते थे। उसके बेटे-बहू बड़े मजे से टेबल पर खाना खाती थी। सभी लोग आराम से बैठ कर खाना खा रहे थे। कभी कभार उन दोनों की नजर बुजुर्ग की तरफ जाती तो देखते थे कि उनकी आंखों में आंसू दिखाई है। परंतु यह देख उनके बहू-बेटे का मन नहीं पिघलता था।
उनकी छोटी-छोटी गलतियों पर ढेर सारी बातें सुना देते थे। वहां बैठा वह छोटा सा बालक भी बड़े ध्यान से देखता था। और अपने में मस्त रहता था। एक रात खाने से पहले छोटे से बालक को उसके माता-पिता ने जमीन पर बैठकर कुछ बनाते हुए देखा। तब उसके पिता ने पूछा तुम क्या बना रहे हो?
उस बच्चे ने बड़ी मासूमियत के साथ उत्तर दिया
"अरे पिताजी मैं तो आप लोगों के लिए एक लकड़ी का कटोरा बना रहा हूं। ताकि जब आप भी बूढ़े हो जाए तो आप लोगों को इसी लकड़ी के कटोरा में खाना दे सकूं।"
उस छोटे से बालक के मुंह से यह सुन उसके माता पिता पर इसका बहुत गहरा असर हुआ। उनकी आंखों से आंसू बहने लगे। क्योंकि उन्हें अपनी गलती का एहसास हो चुका था। दोनों ने उस बूढ़े व्यक्ति से क्षमा मांगी और उस दिन के बाद से उन्होंने कभी भी अपने पिता के साथ अभद्र व्यवहार नहीं किया। बल्कि हमेशा अपने पिता का बहुत ख्याल रखते थे।
इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि कई बार हम अपने बच्चों को तो नैतिक शिक्षा देते हैं। परंतु स्वयं उसका पालन करना भूल जाते हैं। यदि हम स्वयं बड़ों का आदर करेंगे। तभी हमारे बच्चे भी बड़ों का आदर करेंगे।
इसलिए कभी भी अपने माता पिता के साथ ऐसा व्यवहार ना करें कि कल को आप की संतान भी आपके लिए एक लकड़ी का कटोरा तैयार करने लगे।
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