रविवार, 28 जून 2020

पंचतंत्र कहानी - कौआ और उल्लू । Moral Stories in Hindi

पंचतंत्र कहानी - कौआ और उल्लू । Moral Stories in Hindi

पंचतंत्र कहानी - कौआ और उल्लू । Moral Stories in Hindi बहुत समय पहले की बात हैं, एक जंगल में विशाल बरगद का पेड़ कौओं की राजधानी थी. हजारों कौए उस पर रहते थे. उसी पेड़ पर कौओं का राजा मेघवर्ण भी रहता था.

बरगद के पेड़ के पास ही एक पहाड़ी थी, जिसमें कई गुफाएं थीं. उन गुफाओं में उल्लू रहते थे, उनका राजा अरिमर्दन था. अरिमर्दन बहुत पराक्रमी था. कौओं को तो उसने उल्लुओं का दुश्मन नम्बर एक घोषित कर रखा था. उसे कौओं से इतनी नफरत थी कि किसी कौए को मारे बिना वह भोजन नहीं करता था

पंचतंत्र कहानी - कौआ और उल्लू । Moral Stories in Hindi
पंचतंत्र कहानी - कौआ और उल्लू । Moral Stories in Hindi

जब बहुत ज़्यादा कौए मारे जाने लगे तो उनके राजा मेघवर्ण को बहुत चिंता हुई. उसने इस समस्या पर विचार करने के लिए सभा बुलाई.
मेघवर्ण बोला, “मेरे प्यारे कौओं, आपको तो पता ही हैं कि उल्लुओं के आक्रमण के कारण हमारा जीवन असुरक्षित हो गया है. हमारा शत्रु शक्तिशाली हैं और अहंकारी भी. हम पर रात को हमले किए जाते हैं. हम रात को देख नहीं पाते. हम दिन में जवाबी हमला नहीं कर पाते, क्योंकि वे गुफा के अंधेरे में सुरक्षित बैठे रहते है.”

फिर मेघवर्ण ने स्याने और बुद्धिमान कौओं से अपने सुझाव देने को कहा. एक डरपोक कौआ बोला, “हमें उल्लुओं से समझौता कर लेना चाहिए. वह जो शर्त रखें, हमें स्वीकार कर लेना चाहिए. अपने से ताकतवर दुश्मन से पिटते रहने का भला क्या मतलब है?” बहुत-से कौओं ने इस बात का विरोध किया. एक गर्म दिमाग़ का कौआ चीखा, “हमें उन दुष्टों से बात नहीं करनी चाहिए. सब उठो और उन पर आक्रमण कर दो.” एक निराशावादी कौआ बोला, “शत्रु बलवान है हमें यह स्थान छोडकर चले जाना चाहिए.” स्याने कौए ने सलाह दी, “अपना घर छोड़ना ठीक नहीं होगा. हम यहां से गए तो बिल्कुल ही टूट जाएंगे. हमें यहीं रहकर और पक्षियों से मदद लेनी चाहिए.”
कौओं में सबसे चतुर व बुद्धिमान स्थिरजीवी नामक कौआ था, जो चुपचाप बैठा सबकी दलीलें सुन रहा था. राजा मेघवर्ण उसकी ओर मुड़े, “महाशय, आप चुप हैं, मैं आपकी राय जानना चाहता हूं.” स्थिरजीवी बोला, “महाराज, शत्रु अधिक शक्तिशाली हो तो छलनीति से काम लेना चाहिए.”
“कैसी छलनीति? ज़रा साफ़-साफ़ बताइए, स्थिरजीवी.” राजा ने कहा. स्थिरजीवी बोला, “आप मुझे भला-बुरा कहिए और मुझ पर जानलेवा हमला कीजिए.” मेघवर्ण चौंका, “यह आप क्या कह रहे हैं स्थिरजीवी?”

पंचतंत्र कहानी - कौआ और उल्लू । Moral Stories in Hindi
स्थिरजीवी राजा मेघवर्ण वाली डाली पर जाकर कान में बोला, “छलनीति के लिए हमें यह नाटक करना पडेगा. हमारे आसपास के पेड़ों पर उल्लू जासूस हमारी इस सभा की सारी कार्यवाही देख रहे हैं. उन्हे दिखाकर हमें फूट और झगड़े का नाटक करना होगा.

इसके बाद आप सारे कौओं को लेकर ॠष्यमूक पर्वत पर जाकर मेरी प्रतीक्षा करें. मैं उल्लुओं के दल में शामिल होकर उनके विनाश का सामान जुटाऊंगा. घर का भेदी बनकर उनकी लंका ढाएगा.”
फिर नाटक शुरू हुआ. स्थिरजीवी चिल्लाकर बोला, “मैं जैसा कहता हूं, वैसा कर राजा के बच्चे. क्यों हमें मरवाने पर तुला हैं?” मेघवर्ण चीख उठा, “गद्दार, राजा से ऐसी बदतमीजी से बोलने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?” कई कौए एकसाथ चिल्ला उठे, “इस गद्दार को मार दो.” राजा मेघवर्ण ने अपने पंख से स्थिरजीवी को ज़ोरदार झापड़ मारकर तने से गिरा दिया और घोषणा की, “मैं गद्दार स्थिरजीवी को कौआ समाज से निकाल रहा हूं. अब से कोई कौआ इस नीच से संबध नहीं रखेगा.”

आसपास के पेड़ों पर छिपे बैठे उल्लू जासूसों की आंखे चमक उठी. उल्लुओं के राजा को जासूसों ने सूचना दी कि कौओं में फूट पड़ गई है. मार-पीट और गाली-गलौच हो रही है. इतना सुनते ही उल्लुओं के सेनापति ने राजा से कहा, “महाराज, यही मौक़ा है कौओं पर आक्रमण करने का. इस समय हम उन्हें आसानी से हरा देंगे.”
उल्लुओं के राजा अरिमर्दन को सेनापति की बात सही लगी. उसने तुरंत आक्रमण का आदेश दे दिया. बस फिर क्या था उल्लुओं की सेना बरगद के पेड़ पर आक्रमण करने चल पड़ी, परंतु वहां एक भी कौआ नहीं मिला.
मिलता भी कैसे? योजना के अनुसार मेघवर्ण सारे कौओं को लेकर ॠष्यमूक पर्वत की ओर कूच कर गया था. पेड़ ख़ाली पाकर उल्लुओं के राजा ने थूका, “कौए हमारा सामना करने की बजाय भाग गए. ऐसे कायरों पर हज़ार थू.” सारे उल्लू “हू-हू” की आवाज़ निकालकर अपनी जीत की घोषणा करने लगे.

नीचे झाड़ियों में गिरा पड़ा स्थिरजीवी कौआ यह सब देख रहा था. स्थिरजीवी ने कां-कां की आवाज़ निकाली. उसे देखकर जासूस उल्लू बोला, “अरे, यह तो वही कौआ है, जिसे इनका राजा धक्का देकर गिरा रहा था और अपमानित कर रहा था.”
उल्लुओं का राजा भी आया. उसने पूछा, “तुम्हारी यह दुर्दशा कैसे हुई?” स्थिरजीवी बोला, “मैं राजा मेघवर्ण का नीतिमंत्री था. मैंने उनको नेक सलाह दी कि उल्लुओं का नेतृत्व इस समय एक पराक्रमी राजा कर रहे हैं, इसलिए हमें उल्लुओं की अधीनता स्वीकार कर लेनी चाहिए. मेरी बात सुनकर मेघवर्ण क्रोधित हो गया और मुझे फटकार कर कौओं की जाति से बाहर कर दिया. मुझे अपनी शरण में ले लीजिए.”

पंचतंत्र कहानी - कौआ और उल्लू । Moral Stories in Hindi
पंचतंत्र कहानी - कौआ और उल्लू । Moral Stories in Hindi
उल्लुओं का राजा अरिमर्दन सोच में पड़ गया. उसके स्याने नीति सलाहकार ने कान में कहा, “राजन, शत्रु की बात का विश्‍वास नहीं करना चाहिए. यह हमारा शत्रु है. इसे तुरंत मार देने में ही भलाई है. क्योंकि इसे अपने साथ रखने में बहुत खतरा है. तब तुरंत एक चापलूस मंत्री ने कहा नहीं-नहीं महराज ! इस कौए को अपने साथ मिलाने से बहुत लाभ होगा. यह कौओं के घर के भेद हमें बताएगा.”
राजा को भी स्थिरजीवी को अपने साथ मिलाने में लाभ नज़र आया और उल्लू स्थिरजीवी कौए को अपने साथ ले गए. वहां अरिमर्दन ने उल्लू सेवकों से कहा, “स्थिरजीवी को गुफा के शाही मेहमान कक्ष में ठहराओ, इन्हें कोई कष्ट नहीं होना चाहिए.”
स्थिरजीवी हाथ जोड़कर बोला, “महाराज, आपने मुझे शरण दी, यही बहुत है. मुझे अपनी शाही गुफा के बाहर एक पत्थर पर सेवक की तरह ही रहने दीजिए. वहां बैठकर आपके गुण गाते रहने की ही मेरी इच्छा है.” इस प्रकार स्थिरजीवी शाही गुफा के बाहर डेरा जमाकर बैठ गया.
गुफा में नीति सलाहकार ने राजा से फिर से कहा,“महाराज! शत्रु पर विश्‍वास मत करो. उसे अपने घर में स्थान देना तो आत्महत्या करने समान है.” अरिमर्दन ने उसे क्रोध से देखा, “तुम मुझे ज़्यादा नीति समझाने की कोशिश मत करो. चाहो तो तुम यहां से जा सकते हो.” नीति सलाहकार उल्लू अपने दो-तीन मित्रों के साथ वहां से सदा के लिए यह कहता हुआ चला गया, “विनाशकाले विपरीत बुद्धि.”
कुछ दिनों बाद स्थिरजीवी लकड़ियां लाकर गुफा के द्वार के पास रखने लगा, “सरकार, सर्दियां आनेवाली हैं. मैं लकड़ियों की झोपड़ी बनाना चाहता हूं ताकि ठंड से बचाव हो.” धीरे-धीरे लकड़ियों का काफ़ी ढेर जमा हो गया

एक दिन जब सारे उल्लू सो रहे थे, तो स्थिरजीवी वहां से उड़कर सीधे ॠष्यमूक पर्वत पहुंचा, जहां मेघवर्ण और अन्य कौए उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे. स्थिरजीवी ने कहा, “अब आप सब निकट के जंगल से जहां आग लगी है एक-एक जलती लकड़ी चोंच में उठाकर मेरे पीछे आइए.”
कौओं की सेना चोंच में जलती लकड़ियां पकड़ स्थिरजीवी के साथ उल्लुओं की गुफाओं में आ पहुंची. स्थिरजीवी द्वारा ढेर लगाई लकड़ियों में आग लगा दी गई. सभी उल्लू जलने या दम घुटने से मर गए. राजा मेघवर्ण ने स्थिरजीवी को कौआ रत्न की उपाधि दी


कहानी से सीख-: इस "पंचतंत्र कहानी - कौआ और उल्लू । Moral Stories in Hindi" कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि कभी भी शत्रु को अपने घर में पनाह नहीं देना चाहिए क्योंकि ऐसा करना मतलब स्वयं के विनाश का कारण बनना है

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