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रविवार, 16 अगस्त 2020

खतरनाक आइसलैंड और किसान की नौकरी। Panchatantra Stories

खतरनाक आइसलैंड और किसान की नौकरी। Panchatantra Stories

खतरनाक आइसलैंड और किसान की नौकरी। Panchatantra Stories-: बहुत समय पहले की बात है। आइसलैंड के दक्षिणी छोड़ पर एक किसान रहता था। यह जगह बहुत खतरनाक थी। क्योंकि आए दिन यहां पर आंधी तूफान और भारी वर्षा आते रहते थे। इस किसान को अपने खेत में काम करने के लिए एक मजदूर की आवश्यकता थी। परंतु कोई भी मजदूर इस आइसलैंड पर काम करने को तैयार नहीं था। क्योंकि कोई व्यक्ति अपनी जान को जोखिम में नहीं डालना चाहता था।

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एक बार किसान ने शहर की एक अखबार में विज्ञापन दिया कि उसे खेत में काम करने वाले एक मजदूर की आवश्यकता है। अखबार में छपी इस विज्ञापन के कारण बहुत सारे लोग उस किसान के पास पहुंचे। लेकिन जब वे उस खतरनाक जगह के बारे में सुनते तो काम करने से मना कर देते थे। अंत में एक सामान्य कद का बहुत ही पतला-दुबला एक व्यक्ति किसान के पास पहुंचा। उसे देख कर किसान को नहीं लगा कि यह व्यक्ति काम कर सकता है।

परंतु कोई और काम करने वाला व्यक्ति नहीं मिल रहा था। इसलिए किसान ने उस व्यक्ति से पूछा कि क्या तुम इतने विषम परिस्थितियो में काम कर सकते हो? उस मजदूर ने उत्तर दिया हां और कहा कि "जब हवा चलती है तब मैं सोता हूँ।" मजदूर की बातें सुन किसान को थोड़ा अजीब लगा। परंतु उसने फिर भी इसे काम पर रख लिया।

मजदूर बहुत मेहनती था। वह सुबह से शाम तक खेतों में काम करता। किसान भी इस मजदूर से काफी संतुष्ट था। कुछ दिन इसी तरह बीता। एक रात अचानक जोर-जोर से हवा बहने लगी। किसान समझ गया कि अब तूफान आने वाला है। वह तेजी से उठा। अपने हाथ में टोर्च लिया और मजदूर के झोपड़ी की तरफ चला गया। किसान ने देखा कि मजदूर आराम से सो रहा है।

उसने कहा जल्दी उठो। देखते नहीं कि भयंकर तूफान आने वाला है। सब कुछ बर्बाद हो जाएगा। जल्दी से उठो और सारी फसल को अच्छी तरह से ढक दो। मजदूर ने बड़े आराम से कहा कि मालिक मैंने आपसे पहले ही कहा था कि जब हवा चलती है। तब मैं सोता हूँ। यह सुन किसान को बहुत गुस्सा आया। एक बार तो उसने सोचा कि इस मजदूर को गोली मार दे। परंतु तूफान को देखते हुए। वह चीजों को बचाने के लिए अपने खेत की ओर भागा।

किसान जब खेत में पहुंचा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने देखा कि फसल की गांठ अच्छी तरह से बंधी हुई थी। और तिरपाल से ढंकी हुई भी थी। गाय बैल भी सुरक्षित बंधे हुए थे। यानी सारी चीजें बिल्कुल व्यवस्थित तरीके से थी। नुकसान होने की कोई संभावना नहीं थी।

किसान को पश्चाताप होने लगा कि ना जाने गुस्से में उसने उस मजदूर से क्या-क्या कह दिया? जबकि उस मजदूर ने तो आंधी आने से पूर्व ही सारी तैयारी कर ली थी। उसने जाकर उस मजदूर से क्षमा मांगी। क्योंकि "जब हवा चलती है तब मैं सोता हूँ।" इसका अर्थ वह किसान अब समझ चुका था।

इस कहानी से सीख-: हमारे जीवन में भी कभी-कभी कुछ ऐसे ही तूफान रूपी समस्याओं का आना निश्चित है। आवश्यकता है तो हमें उस मजदूर की तरह पहली से तैयारी करके रखने की। ताकि समस्या आने पर भी हम चैन से सो सकें। क्योंकि भविष्य में आने वाले समस्याओं का समाधान करके पहले रखना ही बुद्धिमानी है।

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जादुई पत्थर और आलसी शिष्य की कहानी। Story of Magical Stone

जादुई पत्थर और आलसी शिष्य की कहानी। Story of Magical Stone

जादुई पत्थर और आलसी शिष्य की कहानी। Story of Magical Stone-: बहुत समय पहले कि बात है गुरुकुल में एक गुरूजी शिष्यों को शिक्षा दिया करते थे। उस गुरुकुल के सभी शिष्य भी गुरु का सम्मान करता था। उन्हीं शिष्यों में से एक शिष्य नारायण था। नारायण अपने गुरूजी का बहुत आदर-सत्कार करता था। गुरूजी भी अपने इस शिष्य से बहुत खुश थे। परन्तु नारायण में एक अवगुण था जिससे उसके गुरूजी हमेशा चिंतित रहते थे।

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उन्होंने कई बार उसे समझाने का प्रयास किया। परन्तु सारा प्रयास व्यर्थ हो गया। नारायण अपने अध्ययन के प्रति आलसी स्वभाव का था। वह हमेशा अध्ययन से दूर भागता था। उसके अन्दर आज के काम को कल पर टालने की आदत थी। वह हमेशा अपने छोटे से छोटे कामों को भी कल पर टाल देता था।

नारायण के इस आदत को देख गुरूजी ने मन ही मन सोचा, यदि मैंने अपने शिष्य के कल्याण के लिए यथाशीघ्र ही कोई निर्णय नहीं लिया तो नारायण का भविष्य अंधकारमय हो जायेगा। यह सोच गुरूजी ने एक योजना बनाई। अगले दिन गुरूजी ने एक काले पत्थर के टुकड़े को लिया और नारायण को दे दिया।

नारायण को पत्थर देते समय कहा कि गुरूजी ने कहा वत्स! यह एक जादुई पत्थर है, जिसे किसी भी लोहे की वस्तु से स्पर्श करने पर वह सोने में परिवर्तित हो जाता है। चूँकि मैं 2 दिनों के लिए गुरुकुल से बाहर जा रहा हूँ। इसलिए यह जादूई पत्थर मैं तुम्हें सौप रहा हूँ। और जब मैं 2 दिनों के पश्चात आऊंगा। तब इस पत्थर को मैं तुमसे वापस ले लूंगा।

गुरु की आवाज सुनकर नारायण की आखें चमक उठी। उसने खुशी-खुशी गुरुजी के इस बात को मान लिया। लेकिन नारायण बहुत आलसी स्वभाव का था। इसलिए उसने पहला दिन सपने देखते हुए बिता दिया। अर्थात पहला दिन अपने मन में यही कल्पना करता रह गया कि उसके पास बहुत सारा स्वर्ण होग। वह एक राजा की तरह अपना जीवन व्यतीत करेगा।

उसके पास ढेर सारे नौकर चाकर होंगे। और उसे अपने जीवन में कभी भी किसी भी चीज की कमी महसूस नहीं होगी। यह सोचते हुए उसने बिना कुछ किये अपना दिन भर गवां दिया। दूसरे दिन नारायण प्रातः काल उठा। उसे अच्छी तरह से ज्ञात था कि आज इस जादुई पत्थर का लाभ लेने का आखिरी दिन है। इसलिए उसने अपने मन में निश्चय किया कि चाहे कुछ भी क्यों न हो जाए इस जादुई पत्थर का लाभ जरुर उठाएगा।

उसने अपने मन में सोचा कि मंडी जाऊंगा और मंडी से ढेर सारा लोहे की वस्तु खरीद का लाऊंगा। इन सभी वस्तु को सोने में परिवर्तित कर दूंगा, जिससे मैं बहुत अधिक धनी आदमी बन जाऊंगा। फिर कुछ क्षण के बाद उसके मन में एक विचार आया कि अभी तो दिन बीतने में काफी समय है। इसलिए दोपहर में भोजन करने के बाद मंडी से सामान ले आऊंगा।

यह सोचकर उसने दोपहर का भोजन कर लिया। भोजन के उपरांत उसे नींद आ गई और वह सो गया। जब उठा तो सूर्यास्त हो चुका था और उसके गुरुजी भी उसके पास पहुंच चुके थे। गुरूजी को देख नारायण के तो होश उड़ गये। क्योंकि गुरूजी वह जादुई पत्थर वापस लेने आये थे। नारायण गुरूजी के चरणों में गिर गया और एक दिन और इस जादुई पत्थर को रखने की विनती करने लगा।

परन्तु गुरूजी ने उसकी एक न सुनी और जादुई पत्थर को वापस ले लिया। नारायण बहुत उदास हो गया। क्योंकि उसका धनी बनने सपना टूट गया। नारायण को अपनी गलती का एहसास हो गया कि उसके टालमटोल के कारण ही आज उसके हाथ से यह सुअवसर चला गया। उसने निश्चय किया कि आज के बाद वह कभी भी अपने कामों को करने में आलस नहीं करेगा।
इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि कभी भी अपने कामों को आने वाले कल पर नहीं टालना चाहिए। क्योंकि कल कभी नहीं आता। इसलिए आपने जो निर्णय लिया हो उसे समय रहते पूरा कर लें। अन्यथा आपको भी इस शिष्य की तरह पश्चाताप करना पड़ सकता है।

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शुक्रवार, 14 अगस्त 2020

पंचतंत्र की कहानियाँ : दो मुंहवाला पंछी। Stories of Hindi

पंचतंत्र की कहानियाँ : दो मुंहवाला पंछी। Stories of Hindi

पंचतंत्र की कहानियाँ : दो मुंहवाला पंछी। Stories of Hindi-: सुंदर वन नामक जंगल में एक बहुत ही सुंदर पक्षी रहती थी। यह पक्षी अपने आप में बहुत अद्भुत थी। क्योंकि इस अनोखे पक्षी के पास दो मुंह थे। इसका सिर्फ मुंह ही दो थे। बाकी शरीर का सभी अंग सामान्य पक्षियों की तरह ही थे। इस पक्षी का पेट एक ही था। यह पक्षी हमेशा झील के किनारे घूमते थे। कभी पेड़ों के आसपास भी घूमते थे।

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एक दिन यह पक्षी जंगल में टहल रहे थे। तभी उसमें से एक मुंह की नजर एक मीठे फल पर पड़ी। उसे देखकर उसके मन मुंह में पानी आ गया। और वह बहुत खुश हुआ। उसने जल्दी से फल के पास गया और उसे खाने लगा। फल बहुत ही स्वादिष्ट और मीठा था। उसने फल को खाते हुए दूसरे मुंह से कहा यह तो बेहद स्वादिष्ट और रसीला फल है। इसे खाकर तो मजा आ जाएगा।

उसकी बात सुनकर दूसरे मुंह ने कहा मुझे भी फल खाने को दो। मैं भी इसे थोड़ा सा खाना चाहती हूं। पहले मुंह ने कहा अरे तुम इसे खा कर क्या करोगे? या एकदम शहद जैसा मीठा है। वैसे भी हमारे पेट तो एक ही है। इसलिए मैं खाऊं या तुम क्या फर्क पड़ता है? यह कहते हुए पहले मुंह ने उस मीठे फल को खा लिया।

यह देख दूसरे मुंह को बहुत गुस्सा आया। परन्तु उसने कुछ नहीं कहा। उसने सोचा कि यह कितना स्वार्थी है। उसने पहले मुहं से बातचीत करना बंद कर दिया और मन ही मन निश्चय किया कि वह अपने इस अपमान का बदला अवश्य लेगी। कुछ दिनों तक दोनों में बातचीत बंद थी। फिर एक दिन वे उसी बगीचे में घूम रहे थे। तभी दूसरी मुंह की नजर एक फल पर पड़ी जो की बहुत ही जहरीला था।

उसने सोचा कि बदला लेने का यही सही मौका है। यह सोचकर उसने पहले मुंह से कहा कि मुझे यह फल खाना है। पहले मुंह ने दूसरे मुंह से विनती करते हुए कहा कि नहीं-नहीं इस फल को मत खाओ। यह फल बहुत ही जहरीला है और इसे खाकर हम मर जाएंगे।

दूसरी मुंह ने कहा नहीं-नहीं मैं इसे जरुर खाऊँगी, तुम्हें इससे क्या? पहले मुंह ने गिरगिराते हुए कहा, हमारे मुंह भले ही दो है। लेकिन पेट तो एक ही है। तुम इस फल को यदि खा लोगे तो हम दोनों की मौत हो जाएगी। इसलिए इस जहरीले फल को मत खाओ।

लेकिन दूसरे मुंह ने पहले मुंह की एक न सुनी और उसने वह जहरीला फल खा लिया। धीरे-धीरे जहर ने अपना प्रभाव दिखाना शुरु कर दिया और देखते ही देखते दो मुंह वाले इस अनोखी पक्षी का अंत हो गया।

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें कभी भी अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की हानि नहीं पहुंचाना चाहिए। हमेशा सभी के हितों का ध्यान रखना चाहिए क्योंकि स्वार्थ हमेशा खतरनाक होता है।

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पंचतंत्र की कहानी : गौरैया और कोबरा। Sparrow and King Cobra

पंचतंत्र की कहानी : गौरैया और कोबरा। Sparrow and King Cobra

पंचतंत्र की कहानी : गौरैया और कोबरा। Sparrow and King Cobra-: बहुत पुरानी बात है। एक धनवान राज्य में एक अति पुराना बरगद का पेड़ था। उस पेड़ पर एक गौरैया का जोड़ा रहता था। यह जोड़ा दिनभर भोजन की तलाश में बाहर रहता और शाम होते ही अपने घोंसले में वापस लौट आता। उसी बरगद के पेड़ के नीचे एक दुष्ट कोबड़ा सांप रहता था। गौरैया का जीवन बहुत ही खुशहाल बीत रहा था।

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एक बार गौरैया ने कुछ अंडे दिए। दोनों बहुत खुश थे। लेकिन एक दिन जब वह दाना चुग कर वापस अपने घोंसले में आए तो उन्होंने देखा कि उनका अंडा गायब है। उस पेड़ के नीचे रहने वाले सांप ने चुपचाप गौरैया की अंडों को खा लिया था। दोनों बहुत रोने लगे। गौरैया हर बार अंडे देती। और जब बाहर दाना चुगने जाती तो सांप मौका देख कर उनके अंडों को खा जाता।

इस तरह बार बार ऐसा होने लगा। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि उनके जाने के बाद उनके अंडे को कौन खाता है। एक दिन उन्होंने चुपके से पेड़ के ऊपर छुपकर देखने लगे कि हमारे अनुपस्थिति में मेरे घोसले में कौन आता है। तभी उनकी नजर उसी पेड़ के नीचे रहने वाले सांप पर पड़ी। जो चुपके से उनके अंडे को खाता और वापस अपने बिल में पहुंच जाता।

यह देख वे दोनों डर गए और बहुत रोने लगे। दोनों ने निश्चय किया कि वह इस पेड़ को छोड़कर कहीं वापस चले जाएंगे। तभी उनका मित्र लोमड़ी वहीँ से गुजर रहा था। उसने गोरैया को चिंतित देखा। उसने गोरैया के चिंतित होने का कारण पूछा। गोरैया ने अपनी सारी दुख-भरी कहानी लोमड़ी को सुनाई।

लोमड़ी ने काफी सोच-विचार करने के बाद गोरैया से कहा कि तुम्हें इस तरह अपने घर को छोड़कर कहीं जाने की कोई जरूरत नहीं है। मैं एक तरकीब बता रही हूँ। इसे करने के बाद तुम्हारे शत्रु समाप्त हो जाएंगे। लोमड़ी ने उसे एक योजना बताई। लोमड़ी की बाद सुनकर गोरैया ने उसे धन्यवाद दिया।

योजना अनुसार अगले दिन उस प्रदेश की महाराजा की पुत्री राजकुमारी एक सरोवर में अपनी सहेलियों के साथ स्नान करने आने वाली थी। उनके साथ उनके अंगरक्षक और सैनिक जी थे। योजना अनुसार गोरेया ने राजकुमारी के द्वारा सरोवर किनारे रखे गए आभूषण में से एक कीमती मोती के हार हो अपनी चोंच में उठाया और भागने लगा।

तभी सैनिकों की नजर उसे गोरैया पर पड़ी। उन्होंने देखा कि गौरैया राजकुमारी की हार को लेकर धीरे-धीरे उड़ता जा रहा है। सैनिक भी उसका पीछा करने लगे। गोरैया जल्दी से अपने घोसले में आया और सैनिक को दिखाते हुए उस हार को सांप के बिल में इस तरह गिराया ताकि वह सांप के बिल के अंदर चला जाए। सैनिक ने देखा कि वह मोती का हार एक बिल में गिरा है।

सैनिक ज्यों ही हार लेने पहुंचा। तो उन्होंने देखा कि उस बिल से एक काला सर्प निकल गया। उसे देख सैनिकों ने अपने डंडों और भालों से उस सांप के टुकड़े-टुकड़े कर डाला जिससे उस दुष्ट सांप का अंत हो गया। गोरैया बहुत खुश थी। उसने मन ही मन लोमडी को बहुत-बहुत धन्यवाद दिया और दोनों खुशी से उसी पेड़ पर रहने लगे।

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि आपका शरीर भले ही कमजोर हो। लेकिन आप अपनी बुद्धिमानी की मदद से बड़े से बड़े ताकतवर दुश्मन को भी हरा सकते हैं। क्योंकि बुद्धि का प्रयोग करके हर संकट का हल आसानी से निकाला जा सकता है।

इसलिए संकट के समय रोना नहीं चाहिए बल्कि धैर्य से अपने बुद्धि का उपयोग करके समस्या का समाधान निकालना चाहिए।

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पंचतंत्र कहानियाँ : बोलती गुफा। Speaking Cave Story

पंचतंत्र कहानियाँ : बोलती गुफा। Speaking Cave Story

पंचतंत्र कहानियाँ : बोलती गुफा। Speaking Cave Story-: जंगल में एक शेर रहता था वह बहुत बूढा हो चुका था। बुढापे के कारण उसका शरीर धीरे-धीरे कमजोर हो रहा था। बुढापे के कारण ही वह एक छोटे से छोटे जानवर का भी शिकार नहीं कर पाता था। हर छोटा सा छोटा जानवर भी चकमा देकर शेर के सामने से भाग जाता था। कई दिनों तक उसे भोजन नहीं मिल पाया था, जिसके कारण भूख से उसका बहुत बुरा हाल हो गया था।

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एक दिन वह भटकते-भटकते भोजन की तलाश में एक गुफा के पास जा पहुंचा। गुफा के पास पहुंच कर शेर ने मन ही मन सोचा कि इस गुफा में जरुर कोई जंगली जानवर रहता होगा। क्यों न मैं जाकर इस गुफा के अंदर बैठ जाऊं और इसमें रहने वाले जानवर के आने की प्रतीक्षा करूँ। और जब वह जानवर आएगा तो उसे खाकर में अपनी भूख मिटा लूँगा। यह सोचकर बूढा शेर झट से उस गुफा में घुस गया।

दरअसल उस गुफा में एक बहुत ही चतुर लोमड़ी रहती थी। लोमड़ी शिकार करके अपनी गुफा की ओर जाने लगी। अचानक लोमड़ी ने अपनी गुफा के पास शेर के पंजे का निशान देखा। उसे समझते देर नहीं लगी की जरूर इस गुफा के अंदर शेर गया हुआ है। क्योंकि शेर के पंजे के निशान गुफा के अंदर जाते हुए थे। जबकि गुफा से बाहर आते हुए पंजों के निशान नहीं थे। लोमड़ी समझ चुकी थी कि शेर अभी भी इसी गुफा में छुपा हुआ है।

पहले तो वह काफी डर गई। लेकिन उसने खुद को संभालते हुए अपने आप को इस संकट से बचाने का उपाय सोचने लगी। अचानक लोमड़ी के दिमाग में एक तरकीब आया। वह गुफा के द्वार पर खड़े होकर बोलने लगी ओ गुफा! ओ गुफा! कई बार पुकारने के बाद भी अंदर से कोई उत्तर नहीं आया। तब लोमड़ी ने एक बार फिर गुफा से कहा कि सुन गुफा तुम्हारे और मेरे बीच एक संधि है

जब भी मैं बाहर से आऊंगा तो तेरा नाम लेकर तुझे बुलाऊंगा और जिस दिन तुम मेरी बात का उत्तर नहीं दोगी। मैं तुझे छोड़कर किसी और गुफा में रहने के लिए चला जाऊंगा। जवाब ना मिलता देख लोमड़ी बार-बार अपनी बात दोहरा रही थी। गुफा के अंदर बैठे शेर ने जब लोमड़ी की बात सुनी तो उसने सोचा कि शायद यह गुफा बोलती है।

जब भी लोमड़ी आती है तो उससे बात करती है। यह सोचकर शेर ने मधुर आवाज में जवाब दिया अरे ओ लोमड़ी अंदर आ जाओ तुम्हारा स्वागत है। शेर की बात सुन लोमड़ी की आंखें चमक उठी। और उसने जोर से कहा कि अरे शेर मामा तुम!

लगता है बुढ़ापे में तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गई है भला एक गुफा भी बोल सकता है क्या? यह कहते हुए लोमड़ी बड़ी तेजी से जंगल की तरफ भाग गई। जब तक शेर गुफा से बाहर निकला। तब तक लोमड़ी भाग चुकी थी। शेर और अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था। परन्तु वह अफसोस के अलावे कर भी क्या सकता था?

इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि जब कभी भी आप संकट में आ जाये। तब हमें घबराना नहीं चाहिए। बल्कि धैर्यपूर्वक उस समस्या से निकलने की तरकीब खोजनी चाहिए।

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