शनिवार, 13 जून 2020

पंचतंत्र कहानी - बुरे का अंत बुरा । Best Moral Stories

पंचतंत्र कहानी - बुरे का अंत बुरा । Best Moral Stories


पंचतंत्र कहानी - बुरे का अंत बुरा । Best Moral Stories-: यह कहानी एक बहुत ही मार्मिक कहानी है जो इस बात को चरितार्थ करती है कि बुरे का अंत बुरा ही होता है. चाहे आप कितना ही प्रयत्न क्यों न कर लें. कोई भी व्यक्ति कितना भी चतुर या फिर ताकतवर ही क्यों न हो उसका बुरे का अंत बुरा होना निश्चित है.

यह भी पढ़ें-: लालची ब्राह्मण और सांप की कहानी । Panchatantra Stories किसी गावं में चार चोर रहते थे. वे हमेशा मिलकर ही चोरी किया करते थे और जो भी सामान वे चोरी करके लाते परस्पर आपस में बराबर-बराबर बाँट लेते थे. वैसे तो चारों ही एक-दूसरे के प्रति समर्पण की भावना व्यक्त करते थे परन्तु मन ही मन एक दूसरे से बहुत ईर्ष्या करते थे.

पंचतंत्र कहानी - बुरे का अंत बुरा । Best Moral Stories

पंचतंत्र कहानी - बुरे का अंत बुरा । Best Moral Stories


उन चारों के मन में हमेशा यही बात चलते रहती थी कि अगर किसी दिन उन्हें कोई मोटी रकम हाथ लग जाए तो वह अपने बांकी के साथी चोर को जान से मारकर उनके हिस्से का धन भी खुद ही हड़प लेगा.
चारों चोर एक अवसर की तलाश में थे. परन्तु अभी तक उन लोगों को ऐसा मौका नहीं मिला था. चारों चोर बहुत ही धूर्त,दुष्ट और स्वार्थी प्रवृत्ति के थे. उनके दिलों में तनिक भी दया का भाव नहीं था. एक दिन चरों चोर चोरी की इच्छा में इधर-उधर घूम रहे थे. उस दिन गावं में एक व्यापारी आया था जिसके पास बहुत सारा माल-खजाना था. जब उन चारों को इसकी भनक लगी तो उसी रात उन चारों चोर ने उस व्यापारी के घर में सेंध लगाई और घर में घुसकर बहुत सारे रूपया-पैसा, हीरे-जवाहरात, सोना-चाँदी आदि लेकर गायब हो गए. वे चारों चोर सारे सामन को लेकर जंगलों में लेकर चले गए. पुलिस के डर से वे दो दिनों तक भूखे-प्यासे जंगल में भटकते रहे. इधर सेठ में अपने सामानों की चोरी की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी थी, सेठ की पुलिस विभाग में अच्छी जान-पहचान थी. पुलिस चोर को पकड़ने के लिए गावं के चारों ओर फ़ैल चुकी थी. जंगल से निकलना चोरों के लिए खतरे से खाली नहीं था. इसी कारण चोर कुछ दिन तक जंगल में ही छिपे रहे. सेठ ने चोरी की शिकायत पुलिस में दर्ज करा दी थी। सेठ की पुलिस विभाग में भी अच्छी जान-पहचान थी। चोरों को पकड़ने के लिए शहर के चप्पे-चप्पे पर पुलिस फैली हुई थी। जंगल से निकलना चोरों के लिए खतरे से खाली नहीं था। चोरों की इच्छा थी कि अभी वे कुछ दिन जंगल में छिपे रहें। धीरे-धीरे चोरों के पास खाने-पीने की चीजें समाप्त हो गई. कुछ दिन तो उन्होंने भूख बर्दाश्त किया परन्तु जब भूख से उनकी जान निकलने लगी तब उन्होंने खाना मंगवाने का निश्चय किया. आपस में विचार करके दो चोर भोजन लाने चले गए. पहले उन दोनों चोर ने खूब भरपेट खाना खाया और शराब पिया फिर अपने साथी के लिए भी खाना और शराब ले लिया. वहीँ पर इन दोनों चोर ने एक योजना बनाई कि अपने दोनों साथियों मार कर सारा माल हड़प लेंगे. उन्होंने भोजन में जहर मिला दिया और भोजन लेकर जंगल की ओर चल दिये. उसके बाद रास्ते में इन दोनों चोर अपने-अपने मन में यही सोच रहे थे कि खाना खाकर जब वे दोनों मर जाएंगे तो मैं इसे भी मार दूँगा और सारा माल खुद ही हड़प लूँगा. उधर जंगल में उन दोनों चोरों ने भी एक योजना बनाई कि खाना खाकर उन दोनों साथियों को मार कर सारा धन हड़प लेंगे. जब दोनों चोर शहर से खाना लेकर जंगल पहुंचे तो जंगल में ठहरे हुए चोरों ने अपने साथियों पर हमला कर दिया और उन्हें मौत के घाट उतार दिया. अपने दोनों साथिओं की हत्या करके वे दोनों आराम से खाना खाने लगे. खाना खाने के कुछ ही देर बाद वे दोनों भी तड़प-तड़प कर मर गए क्योंकि उस खाने में जहर मिला हुआ था. इसलिए कहा गया है कि हमेशा बुरे का अंत बुरा ही होता है.

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