पंचतंत्र की कहानी : भालू और दो मित्र - Short Story for Kids
पंचतंत्र की कहानी : भालू और दो मित्र - Short Story for Kids-: एक बार की बात है। एक गांव में दो मित्र रहते थे। दोनों में काफी गहरी मित्रता थी। एक का नाम राम और दूसरे का नाम श्याम था। गांव के अन्य लोग भी दोनों की मित्रता की मिसाल देते थे। एक बार दोनों मित्र पास के ही दूसरे गांव में मेला देखने गए थे। कुछ देर बाद अंधेरा होने वाला था। यह देख राम और श्याम ने निश्चय किया कि जंगल वाले रास्ते से ही घर जाया जाय।
दोनों जंगल से होकर गुजर रहे थे तो राम बहुत डरा हुआ था। तब श्याम ने कहा कि राम डरो मत मैं तुम्हारा अच्छा मित्र हूं। तुम्हें कुछ होने नहीं दूंगा। मैं तुम्हारे साथ हूं। इसलिए डरने की कोई जरुरत नहीं है। इधर श्याम राम को समझा ही रहा था। तभी अचानक एक भालू उसकी ओर आता दिखा ।
भालू को देख दोनों काफी डर गए। तभी श्याम ने राम को वही अकेला छोड़कर झट से एक ऊंची पेड़ पर चढ़ गया। यह देख राम ने श्याम से अनुरोध किया कि उसे अकेला छोड़कर ना जाए। राम को पेड़ पर चढ़ना नहीं आता था। उसे काफी डर भी लग रहा था। राम को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे ?
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तभी उसे अपनी दादी मां की एक बचपन की कहानी याद आई कि भालू कभी भी किसी मृत व्यक्ति को नहीं मारता है। यह सोच राम तुरंत जमीन पर लेट गया और बिना हिले-डुले अपनी सांस को अच्छी तरह से रोक लिया। इधर भालू राम के काफी नजदीक आ गया।
उसने देखा कि राम लेटा हुआ है। भालू उसके करीब आया और उसे सूंघने लगा। भालू कभी उसके पैर तो कभी सर की तरफ सूंघने लगा कुछ देर तक वह राम के निकट ही चक्कर लगाता रहा और फिर राम को मृत समझकर आगे बढ़ गया।
श्याम पेड़ पर बैठा यह सब देख रहा था। भालू के जाने के कुछ देर बाद श्याम पेड़ से नीचे उतरा ।उसने राम को उठाया और उससे हंसते हुए पूछा कि मित्र जब तुम जमीन पर लेटे हुए थे, तब भालू ने तुम्हारे कान में क्या कहा ?
यह सुनकर राम ने कहा कि जब वह जमीन पर लेटा था। तब भालू ने उसके कान में कहा कि जो संकट के समय अपने मित्र को अकेला छोड़ देता है। वह कभी सच्चा मित्र नहीं हो सकता। राम की बात सुनकर श्याम खुद को लज्जित महसूस कर रहा था।
उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था। तब श्याम ने निश्चय किया कि आज के बाद वह कभी भी उसका साथ नहीं छोड़ेगा। चाहे कितना भी संकट का समय क्यों ना हो ? फिर दोनों अपने गांव की और आगे बढ़ गए।
इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है। संकट के समय जो भी मित्र अपने मित्र का साथ छोड़ देता है। वह कभी सच्चा मित्र नहीं हो सकता। इसलिए समय रहते अपने सच्चे मित्रों की पहचान कर लेनी चाहिए अन्यथा हम संकट में भी पढ़ सकते हैं।
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