राजा और डाकू तोते की कहानी I King and Tota Moral Stories
एक राज्य में बहुत शक्तिशाली राजा राज्य करता था। वह बहुत दयालु राजा था। इसलिए उसकी ख्यति आस-पास के गांव में भी फैली हुई थी। वह हमेशा अपनी प्रजा के हित में ही कार्य करता था। उसके शासन व्यवस्था को देख सभी लोग खुश थे। एक बार राजा अपने सैनिकों व मंत्रियों के साथ शिकार करने के लिए जंगल में निकल पड़ा। काफी समय तक वह जंगल में घूमता रहा।
परंतु उसे कोई भी शिकार नहीं मिला। शिकार की खोज में वह धीरे-धीरे घने जंगल में आगे की ओर बढ़ता चला गया। कुछ दूर आगे बढ़ने के पश्चात राजा और उसके सैनिकों को एक डाकुओं का समूह दिखाई दिया। अभी वे लोग जैसे ही कुछ दूर और आगे बढ़े थे। तभी अचानक बगल के पेड़ पर एक तोता बैठा हुआ था। जैसे ही उसने राजा और उसके सैनिकों को अपनी ओर आता देखा।
जोर-जोर से बोलने लगा देखो एक राजा हमारी तरफ ही आ रहा है। इसके पास बहुत सारी स्वर्ण मुद्राएं और धन हैं। जल्दी लूटो! इस राजा के पास बहुत सारा धन है। तोते की आवाज सुनकर सभी डाकू राजा जो पकड़ने के लिए दौड़ पड़े। डाकुओं को अपनी ओर आता देख राजा और उसके सभी सैनिक बड़ी तेजी से भागने लगे।
भागते-भागते वे लोग काफी थक चुके थे। और विश्राम करने के लिए जगह खोज रहे थे। तभी उन्होंने एक बड़ा सा पेड़ देखा। वे सभी उस पेड़ के नीचे आराम करने चले गए। जैसे ही वे सभी पेड़ नीचे गए, तभी उस पेड़ पर बैठे तोता बोल उठा आओ राजन! हमारे महात्मा जी की कुटिया में आपका स्वागत है। नि:संकोच अंदर आइए।
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जल ग्रहण कीजिए और कुछ समय तक विश्राम कर लीजिए। तोते के इस स्वभाव से राजा को बड़ी हैरानी हुई। वह सोचने लगा कि एक ही प्रजाति दो प्राणियों का व्यवहार इतना अलग कैसे हो सकता है? राजा के मन में यही प्रश्न गूंज रहा था कि दोनों तोते के व्यवहार में इतना अंतर कैसे हो सकता है? यह सोचते हुए राजा तोते की बात मानकर साधु की कुटिया में गया और उन्हें प्रणाम करके उनके समीप बैठ गया।
राजा ने जल ग्रहण किया और अपनी सारी घटना उस साधू बाबा को कह सुनाई। फिर उसने साधु से पूछा कि हे ऋषिवर दोनों तोते के व्यवहार में इतना अंतर क्यों है? साधु ने राजा की बात सुनकर मुस्कुराते हुए उत्तर दिया कि राजा यह सब बस संगति का असर है। डाकू के साथ रह कर वह तोता भी डाकुओं की तरह ही व्यवहार करने लगा था। अर्थात वह जिस संगति में रहा वैसा ही बन गया।
कहने का तात्पर्य यह है कि कोई मूर्ख व्यक्ति भी यदि विद्वानों की संगति में रहता है तो वह भी विद्वान बन जाता है। और यदि विद्वान भी मूर्खों की संगति में रहता है तो उसके अंदर भी मूर्खता वाला गुण आ जाता है। इसलिए हमें अपनी संगति सोच समझकर ही करनी चाहिए क्योंकि इससे हमारा व्यवहार तय होता है।
इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें हमेशा अच्छे और विद्वान लोगों की ही संगती करनी चाहिए। क्योंकि हम जिस संगत में रहेंगे हमारा व्यवहार भी वैसा ही बन जाता है। इसलिए सोच-समझकर ही संगती करनी चाहिए।
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