पंचतंत्र कहानियां - अंधेर नगरी चौपट राजा। Hindi Stories
पंचतंत्र कहानियां - अंधेर नगरी चौपट राजा। Hindi Stories-: यह कहानी गुरु शिष्य और एक महामूर्ख राजा की है. एक बार की बात है. एक गुरु और शिष्य काशी तीर्थयात्रा करके वापस लौट रहे थे. वापस अपने गुरुकुल लौटते समय वो एक नगर से गुजर रहे थे.
उस नगर का था अंधेर नगरी. शिष्य मंडी में कुछ खाने-पीने की चीज खरीदने के लिए निकल पड़ा.
जब वह मंडी पहुंचा तो देखा कि वहां हर प्रत्येक सामान एक ही दाम पर मिल रहा था अर्थात ‘सब धान बाइस पसेरी।’
भाजी भी टका सेर और खाजा (मिठाई) भी टका सेर. शिष्य मन ही मन बहुत खुश हुआ. उसने बिना समय गवाएं एक टके का सेर भर खाजा खरीदा और अपने गुरु के पास लौट गया. वहां पहुंचकर उसने अपने गुरु जी से कहा कि ‘‘गुरुजी, यहाँ तो सभी चीजें एक ही दाम पर मिलती है टके सेर भाजी, टके सेर खाजा।
देखिये मैंने एक टका में यह सेर भर खाजा लाया हूँ. यहाँ सभी चीजें सस्ती मिलती है. छोड़िए गुरुकुल कुछ दिन इस अंधेर नगरी में ही रहते हैं और मजा लेते हैं यहाँ का.
गुरु बहुत समझदार थे. उन्होंने अपने शिष्य से कहा कि "बच्चा, इसलिए इसका नाम अंधेर नगरी है. इस अंधेर नगरी में अधिक समय तक रुकना ठीक नहीं है. इसलिए यहाँ से जल्दी चलो और वैसे भी, साधू का किसी एक जगह पर रुकना अच्छा नहीं है. कहा भी गया ही कि ‘साधु रमता भला, पानी बहता भला.’’
शिष्य को गुरु की बात अच्छी नहीं लगी और उसने वहां रहने की जिद करने लगा और उसने अपने गुरु से बोला कि "मैं यहाँ कुछ दिन तो अवश्य रहूँगा." शिष्य की हठ देख गुरु जी को उसे अकेला छोड़कर जाना उचित नहीं लगा और उन्होंने कहा, "ठीक है हमलोग कुछ दिन यहाँ रह लेते हैं और जो होगा देखा जायेगा."
शिष्य अंधेर नगरी का सस्ता माल खा-खाकर खूब मोटा हो गया. एक दिन उस अंधेर नगरी में एक अपराधी को फाँसी की सजा हुई. लेकिन वह अपराधी बहुत ही दुबला-पतला था, जिसके कारण फाँसी का फंदा उसके गले में ढीला हो गया था. यह देख वहां के राजा ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि जिसकी गरदन मोटी हो, उसे ही फाँसी दिया जाय.
खून के बदले में किसी एक को फाँसी होनी ही चाहिए. फिर चाहे वह इस अपराधी की हो या किसी और की हो जीव के बदले जीव.’
इधर सैनिक मोटा व्यक्ति खोजने के लिए अंधेर नगरी में निकल पड़ें. वहां उसने एक आदमी को देखा जो बहुत मोटा था और हलवाई के यहाँ खाजा खरीदकर खा रहा था. सिपाही उसे ही पकड़कर ले चले. जब गुरु को पता चला कि उसके शिष्य को सिपाही पकड़कर ले गये हैं तो उन्हें अपने शिष्य पर बहुत क्रोध आ रहा था.
परन्तु गुरु का हृदय बड़ा दयालु था. इसलिए उन्होंने सोचा यदि जीवित रहेगा तो फिर से ऐसी गलती नहीं करेगा. इसलिए उन्होंने सिपाहियों के पास जाकर बोले, ‘‘इस वक्त फाँसी चढ़ने का हक तो मेरा है, इसका नहीं।’’
‘‘तब सिपाही ने पूछा क्यों ?’’
गुरुजी ने उत्तर दिया ‘‘इस समय कुछ घंटों के मुहूर्त में फाँसी चढ़कर मरनेवाला आदमी सीधा स्वर्ग जाएगा। शास्त्र में भी गुरु से पहले शिष्य को स्वर्ग जाने का अधिकार नहीं दिया गया है.’’
शिष्य गुरु की चाल समझ गया चिल्ला उठा, ‘‘नहीं गुरुजी, मैं ही जाऊँगा। सिपाहियों ने मुझे पकड़ा है। आपको पकड़ा होता तो आप जाते।’’
शिष्य गुरु की चाल समझ गया और वह चिल्ला उठा, ‘‘नहीं गुरुजी, मैं ही जाऊँगा, आप नहीं
इधर गुरूजी भी चिल्लाने लेन नहीं फासी मैं ही चढूंगा. इस बात पर दोनों ने परस्पर झगड़ना शुरू कर दिया. यह देख सिपाही भी हैरान थे. वहां बहुत भीड़ इकट्ठी हो गई क्योंकि ऐसा पहली बार हो रहा था कि कोई आदमी फांसी पर चढ़ने के लिए आपका में झगड़ा कर रहा हो.
जब यह बात उस अंधेर नगरी के राजा को पता चली तो उसने कहा ‘यदि ऐसा मुहूर्त है तो सबसे पहला अधिकार तो राजा का ही होता है और उसके बाद वहां के मंत्रियों का.’’
गुरु शिष्य बहुत चिल्लाए कि साधु से पहले स्वर्ग में जाने का अधिकार किसी भी अन्य व्यक्ति को नहीं है. लेकिन राजा और वहां के मंत्रियों ने उनकी एक न सुनी. सबसे पहले राजा और फिर उसके कई मंत्री एक-एक करके फाँसी पर चढ़ गए.
गुरु ने सोचा कि अब और मनुष्य-हत्या नहीं होनी चाहिए. इसलिए उन्होंने बड़े ही दुःख स्वर में कहा कि ‘‘अब तो स्वर्ग जाने का मुहूर्त समाप्त हो गया.’’ यह सुन
फिर कोई भी फाँसी नहीं चढ़ा.
तभी गुरुजी ने शिष्य के कान में कहा देख लिया, इस अंधेर नगरी में कैसे-कैसे महामूर्ख लोग रहते हैं. इसलिए यहाँ टके सेर भाजी, टके सेर खाजा मिलता है. इसी कारण इसे अंधेर नगरी चौपट राजा कहते हैं.
अब जल्दी यहाँ से निकल भागना चाहिए. इससे पहले कि कोई और मुसीबत आये और दोनों शिष्य और गुरु अपने गुरुकुल की तरफ सरपट भागे.
इस कहानी से सीख-: इस "पंचतंत्र कहानियां - अंधेर नगरी चौपट राजा। Hindi Stories" कहानी से हमें यही सीख मिलती है कि हमें कभी अपने गुरु की बात की अवहेलना नहीं करनी चाहिए नहीं तो हम भी इस लालची शिष्य की तरह किसी बड़ी मुसीबत में पड़ जाएंगे.
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