कहानियां : व्यापारी का संदेह। Motivational Stories in Hindi
कहानियां : व्यापारी का संदेह। Motivational Stories in Hindi-: होशियारपुर नामक एक गांव में एक व्यापारी रहता था। उसका नाम हरिलाल था। हरिलाल एक शादीशुदा व्यक्ति था। उसे 2 वर्ष का एक पुत्र भी था। उसी गांव के कुछ व्यक्ति अपने व्यापार के काम से अक्सर विदेश जाया करते थे। यह देख हरिलाल के मन में भी आया कि उसे भी विदेश जाकर व्यापार करना चाहिए और बहुत सारा धन कमाना चाहिए। ताकि उसका पुत्र और उसकी पत्नी खुशी पूर्वक अपना जीवन बिता सके।
उसने यह बात अपनी पत्नी को बताई। अपनी पत्नी से सलाह मशवरा करके वह विदेश जाने का निश्चय किया। अगले दिन उसने अपने लिए कुछ जरुरी सामान बांधा और व्यापार करने के लिए विदेश चला गया। विदेश में हरिलाल का व्यापार अच्छी तरह से चलने लगा। अपने व्यापार कि सफलता को देख हरिलाल ने सोचा कि अब बहुत सारा धन कमाने के पश्चात ही अपनी पत्नी के पास लौटूंगा।
अभी व्यापार अच्छा चल रहा है। इसलिए कुछ वर्षों तक व्यापार कर लेता हूँ। वह धन कमाने में इतना व्यस्त हो गया कि उसे समय का पता ही नहीं चला। इस प्रकार विदेश में वह 12 वर्षों तक व्यापार करता रहा। हरिलाल ने बहुत सारा धन कमाया। आखिरकार एक दिन उसने उसने निश्चय किया कि अब उसे अपने गांव अपने परिवार के पास लौट जाना चाहिए। हरिलाल अपने साथ बहुत सारा धन लेकर अपने घर की ओर चल दिया।
उसे अपने घर पहुंचने में रात हो गई थी। घर का मुख्य द्वार बंद था। लेकिन उसने देखा कि शयनकक्ष में एक बल्ब जल रहा था। उसने खिड़की से कक्ष में अंदर झांका। झांकने पर उसने जो कक्ष में देखा उसे देख कर उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था। उसके पैरों तले की जमीन खिसकती नजर आ रही थी।
उसने देखा कि शयनकक्ष में उसकी पत्नी के पास एक युवक भी सोया हुआ है। ऐसी परिस्थिति में हरिलाल का अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह करना स्वाभाविक था। उसे अपनी पत्नी पर बहुत क्रोध आ रहा था। क्रोध में ही उसने अपने मन में सोचा कि जिस पत्नी के लिए वह इतने वर्षों तक व्यापार करता रहा उसने उसे धोखा दे दिया।
उसने तुरंत अपने मन में विचार किया कि अपनी पत्नी और उसके बगल में सोए युवक दोनों को मारकर वापस विदेश चला जाऊंगां। हरिलाल यह सोच ही रहा था। तभी उसकी नजर उस शयनकक्ष कि दीवार पर टंगे एक चित्र पर गया, जिसपर एक श्लोक लिखा था कि
"सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम्।
वृणुते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्ध स्वयमेव सम्पदः।।"
अर्थात "किसी भी कार्य को बिना विचारे अचानक नहीं करनी चाहिए ,क्योंकि बिना सोच विचार कर किया हुआ कार्य मनुष्य को बहुत बड़े संकट में डाल देता है।"
यह श्लोक पढ़ने के बाद हरिलाल का विचार बदल गया। उसने अपने क्रोध को शांत किया और घर का दरवाजा खटखटाया।
उसकी पत्नी ने दरवाजा खोलने से पूर्व काफी पूछताछ की और जब पूरी तरह से आश्वस्त हो गई कि कक्ष के बाहर उसका पति ही है। तब उसने झट से दरवाजा खोल दिया। अपने पति को देख उसकी पत्नी बहुत प्रसन्न थी। उसने तुरंत अपने बगल में सोए उस युवक को जगाया और अपने पति से बोली कि या आपका ही पुत्र है।
आज पूरे 18 वर्ष का हो चुका है। जिस समय आप व्यापार करने के लिए विदेश गए थे। उस समय इसकी उम्र मात्र 2 वर्ष था। यह सुन हरिलाल के आंखों में आंसू आ गया। उसने अपने पुत्र और अपनी पत्नी को गले से लगा लिया और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे। क्योंकि हरिलाल का संदेह समाप्त हो चुका था।
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इस कहानी से सीख-: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी बिना विचार विमर्श किए कोई भी निर्णय नहीं लेना चाहिए अन्यथा इसका परिणाम घातक हो सकता है।
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